Beloved Life
प्रियतमा जिंदगी!! , आओ! , फिर से मिलो , जी लें.. कुछ लम्हे , बेतकल्लुफ होकर , कर लें दो-चार बातें , प्यार की - तकरार की , आ जी लूं तुझे , जी भर कर , कब से खड़ा हूँ , राह में.., बांहे फैलाये, और हूँ बेकरार भी , संग तेरे चलने को , कर वादा आज का , आज की शाम का.., कल हम यहाँ हों न हों!
Friday, May 10, 2019
Saturday, February 16, 2019
पुल बामा की घटना पर
कुछ मुल्क,
कुछ कौम,
कुछ लोगों के जेहन से
शान्ति,
प्रेम,
सद्भाव,
इंसानियत
की भावनायें मर गयी हैं क्या??
कुछ कौम,
कुछ लोगों के जेहन से
शान्ति,
प्रेम,
सद्भाव,
इंसानियत
की भावनायें मर गयी हैं क्या??
कुछ लोगों के जेहन में
नफरत,
आतंक,
वैमनस्य,
शैतानी खून
का जहर भर गया है क्या ??
नफरत,
आतंक,
वैमनस्य,
शैतानी खून
का जहर भर गया है क्या ??
हे प्रभु, हे खुदा..
इन्हें जल्दी उठा ले
या फिर
सिखा दे
इन्हें भी मानवता का धर्म
नहीं तो ..
क्या हम सोंचें
'ऊपर वाले' का जमीर सो गया है क्या ??
इन्हें जल्दी उठा ले
या फिर
सिखा दे
इन्हें भी मानवता का धर्म
नहीं तो ..
क्या हम सोंचें
'ऊपर वाले' का जमीर सो गया है क्या ??
Friday, May 25, 2018
Monday, April 11, 2016
मैं और तुम !
बस इतना सा
फर्क है
मुझमे...
और तुझमे...
तुम अक्सर आये
बिन बताये
मिले,
ख्याल बनकर ,
रहे सपनों में,
प्रार्थना में !
और मैं
तुम्हे ढूंढ रहा...
झांक रहा
खिड़कियों से,
पर्दों की ओट से,
दर पर खडा
लंबी कतारों में
मिलने की आस लिए !!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१६
फर्क है
मुझमे...
और तुझमे...
तुम अक्सर आये
बिन बताये
मिले,
ख्याल बनकर ,
रहे सपनों में,
प्रार्थना में !
और मैं
तुम्हे ढूंढ रहा...
झांक रहा
खिड़कियों से,
पर्दों की ओट से,
दर पर खडा
लंबी कतारों में
मिलने की आस लिए !!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१६
Friday, November 13, 2015
मन की भाषा , मन का देश !
जहाँ....
आँखों के इशारे भर से
दुनिया की
तस्वीर बदलती है !
जहाँ ...
कोई जोर नहीं,
कोई शोर नहीं
सभी समझते हैं
मन ही मन...
मन की भाषा
वहीँ चलना है,
वहीँ बसना है !!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ',2015
आँखों के इशारे भर से
दुनिया की
तस्वीर बदलती है !
जहाँ ...
कोई जोर नहीं,
कोई शोर नहीं
सभी समझते हैं
मन ही मन...
मन की भाषा
वहीँ चलना है,
वहीँ बसना है !!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ',2015
Thursday, July 30, 2015
कुछ बातें!
मैं सोंचता हूँ...
क्यों ना
लिख लूं
और बाँच भी लूं
खुद ही
कुछ चिट्ठियाँ
मेरे - तुम्हारे नाम की !
क्या होगा..
थोडा मन हल्का होगा
थोडा भारी होगा..
याद आएँगी
कुछ बातें
बरसों पुराने शाम की !
ऐसे में ही, कहीं दूर..
कोई बादल
भिगो जायेगा
तुम्हारे झरोखे के परदे
शायद ...तब कहीं ,
तुम्हे भी बोध होगा
और लिखोगी सच में
एक खत मेरे नाम की !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ',2015
क्यों ना
लिख लूं
और बाँच भी लूं
खुद ही
कुछ चिट्ठियाँ
मेरे - तुम्हारे नाम की !
क्या होगा..
थोडा मन हल्का होगा
थोडा भारी होगा..
याद आएँगी
कुछ बातें
बरसों पुराने शाम की !
ऐसे में ही, कहीं दूर..
कोई बादल
भिगो जायेगा
तुम्हारे झरोखे के परदे
शायद ...तब कहीं ,
तुम्हे भी बोध होगा
और लिखोगी सच में
एक खत मेरे नाम की !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ',2015
Wednesday, February 11, 2015
कुछ मेरे Facebook पोस्ट से
मैंने पिछले दिनों Facebook पर पोस्ट किया :
तलाश
-------
ढूंढ रहा हूँ
नयी राह
बुन रहा हूँ
नया सपना
अनुभव है ..
आधी जिंदगी का
देखूँगा .. जिंदगी को
नए चश्मे से !!
मेरा नाम
---------
मुझे
पसंद नहीं था
नाम वालों की
भीड़ में खो जाना..
कुछ ऐसे ही याद कर लेना
मुझ अनाम को !!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१५
तलाश
-------
ढूंढ रहा हूँ
नयी राह
बुन रहा हूँ
नया सपना
अनुभव है ..
आधी जिंदगी का
देखूँगा .. जिंदगी को
नए चश्मे से !!
मेरा नाम
---------
मुझे
पसंद नहीं था
नाम वालों की
भीड़ में खो जाना..
कुछ ऐसे ही याद कर लेना
मुझ अनाम को !!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१५
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