आज कल
हम में से
बहुतेरे लोग
हांफ रहे
काँप रहे
लगातार भाग रहे
दरिया में
पर्वत पर
दोजख में भी
हैं बार-बार झांक रहे
काट रहे
अपनों को
मुल्क भी
बाँट रहे
क्या सो गया
जमीर उनका
तभी तो , देखें वे रोज
सपने भी
कालिख सने
क्यों बस उन्हें
चाहिए इस जहाँ में
ऐसा ..वैसा.. कैसा भी..
सिर्फ पैसा , पैसा और बस पैसा ही !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ'
हम में से
बहुतेरे लोग
हांफ रहे
काँप रहे
लगातार भाग रहे
दरिया में
पर्वत पर
दोजख में भी
हैं बार-बार झांक रहे
काट रहे
अपनों को
मुल्क भी
बाँट रहे
क्या सो गया
जमीर उनका
तभी तो , देखें वे रोज
सपने भी
कालिख सने
क्यों बस उन्हें
चाहिए इस जहाँ में
ऐसा ..वैसा.. कैसा भी..
सिर्फ पैसा , पैसा और बस पैसा ही !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ'