आज कल
हम में से
बहुतेरे लोग
हांफ रहे
काँप रहे
लगातार भाग रहे
दरिया में
पर्वत पर
दोजख में भी
हैं बार-बार झांक रहे
काट रहे
अपनों को
मुल्क भी
बाँट रहे
क्या सो गया
जमीर उनका
तभी तो , देखें वे रोज
सपने भी
कालिख सने
क्यों बस उन्हें
चाहिए इस जहाँ में
ऐसा ..वैसा.. कैसा भी..
सिर्फ पैसा , पैसा और बस पैसा ही !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ'
हम में से
बहुतेरे लोग
हांफ रहे
काँप रहे
लगातार भाग रहे
दरिया में
पर्वत पर
दोजख में भी
हैं बार-बार झांक रहे
काट रहे
अपनों को
मुल्क भी
बाँट रहे
क्या सो गया
जमीर उनका
तभी तो , देखें वे रोज
सपने भी
कालिख सने
क्यों बस उन्हें
चाहिए इस जहाँ में
ऐसा ..वैसा.. कैसा भी..
सिर्फ पैसा , पैसा और बस पैसा ही !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ'
bahut sach baat likhi hai ...katu satya ...
ReplyDeleteaise logon ki taadat badhati ja rahi hai ...!!
Thank you Anupama Ji! We must do something to restrict this practice about "MONEY".
Deleteआज कल का सही दृश्य.........
ReplyDeleteमगर आपके क्यों का कोई जवाब नहीं....
सादर
अनु
शुक्रिया अनु जी ! इस 'क्यों' का जवाब हम सब को मिल कर ढूँढना होगा.
Deleteपैसे के रक्त में सब सने हुए हैं . रिश्ता तो बहा जा रहा है भौतिकता के महाजाल में
ReplyDeleteसही कहा...पैसे का ही बोलबाला है...नैतिकता जैसी कोई चीज नहीं रह गई है|
ReplyDeleteउफ्फ्फ ये पैसा ...
ReplyDeleteवास्तविकता दर्शाती कविता
ReplyDeleteपैसों के लालच ने मति मारी सबकी.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !