जीवन की डगर पर
धूप -छांव में,
सर्द लम्हों में ,
अकेले सफर में
जब भी कभी
मेरा मन डरता है
कदम बढ़ाते ..
घबराता है
मैं ..आँखे बंद कर
थके शरीर को संभाल
पिताजी का स्वेटर
पहन लेता हूँ.
और फिर ..
आत्मविश्वास से भरा मन ले
तेज - मजबूत कदमों से
दुनिया जीतने निकल पड़ता हूँ.
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ' , २०१३
धूप -छांव में,
सर्द लम्हों में ,
अकेले सफर में
जब भी कभी
मेरा मन डरता है
कदम बढ़ाते ..
घबराता है
मैं ..आँखे बंद कर
थके शरीर को संभाल
पिताजी का स्वेटर
पहन लेता हूँ.
और फिर ..
आत्मविश्वास से भरा मन ले
तेज - मजबूत कदमों से
दुनिया जीतने निकल पड़ता हूँ.
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ' , २०१३
सुन्दर भावनाएँ....
ReplyDeleteअनु
bahut sunder...
ReplyDeleteThank you very much !
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