चाहे आवाज दो
या न दो
या फिर
ओढ़ लो
नकाब कोई
मैं यादों का मुसाफिर हूँ
समय की रेत पर
तुम्हारे निशान
ढूंढ ही लूँगा !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३
या न दो
या फिर
ओढ़ लो
नकाब कोई
मैं यादों का मुसाफिर हूँ
समय की रेत पर
तुम्हारे निशान
ढूंढ ही लूँगा !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३
समय की रेत पर यादों के निशान ...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
शुक्रिया सदा जी ! यादें रह जाती है...अजर-अम्रर !
ReplyDeletesundar kavitayen ... samay kee ret par nishan dhoondhna badhiya vimb hai...
ReplyDeleteReally nice, a good read :)
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