Tuesday, October 9, 2012

ख्वाहिशें...


ख्वाहिशें...
मेरी भी हैं
तुम्हारी भी
पर हम हैं
कि जी रहे 
जिंदगी रोज-रोज
वैसी ही 
जो बस 
इतना सामर्थ्य रखती हों
जो चुक जाए 
करने में पूरी फरमाइशें ..
दुनिया की,
दुनियादारी की .

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२ 

4 comments:

  1. कोई और राह भी तो नहीं सूझती.....

    अनु

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  2. दुनिया में है तो प्यार और दर्द में दुनियादारी निभानी ही होगी

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  3. सुन्दर रचना

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बताएं , कैसा लगा ?? जरुर बांटे कुछ विचार और सुझाव भी ...मेरे अंग्रेजी भाषा ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें, मैंने लिखा है कुछ जिंदगी को बेहतर करने के बारे में --> www.santoshspeaks.blogspot.com .