ख्वाहिशें...
मेरी भी हैं
तुम्हारी भी
पर हम हैं
कि जी रहे
जिंदगी रोज-रोज
वैसी ही
जो बस
इतना सामर्थ्य रखती हों
जो चुक जाए
करने में पूरी फरमाइशें ..
दुनिया की,
दुनियादारी की .
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
कोई और राह भी तो नहीं सूझती.....
ReplyDeleteअनु
सुन्दर ...
ReplyDeleteदुनिया में है तो प्यार और दर्द में दुनियादारी निभानी ही होगी
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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