तुम...
छिपे फिरते हो
रहस्यों की छाया में
ओढ़े रहते हो
सवालों के नकाब ..
करीब होते हो
प्रेरणा बनकर
प्रदीप्त करते हो
ज्योति बनकर
दिख भी जाते हो
तो रहते हो
आड़ में सतरंगों के
पानी में ..प्रतिबिम्बों में
गर कभी
खुद ही अपना
परिचय बताते,
जवाब बनकर
चेहरा दिखाते
तो सोंचो ..
कितना अच्छा था !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
छिपे फिरते हो
रहस्यों की छाया में
ओढ़े रहते हो
सवालों के नकाब ..
करीब होते हो
प्रेरणा बनकर
प्रदीप्त करते हो
ज्योति बनकर
दिख भी जाते हो
तो रहते हो
आड़ में सतरंगों के
पानी में ..प्रतिबिम्बों में
गर कभी
खुद ही अपना
परिचय बताते,
जवाब बनकर
चेहरा दिखाते
तो सोंचो ..
कितना अच्छा था !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteदिख भी जाते हो
तो रहतो हो ...यहाँ "रहते" हो कर लीजिए.
सादर
अनु
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसच ! कितना अच्छा होता ..
ReplyDeletehttp://urvija.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_2237.html
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत खूब
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