Friday, December 7, 2012

तुम्हारी पहचान !

तुम...
छिपे फिरते हो
रहस्यों की छाया में
ओढ़े रहते हो
सवालों के नकाब ..

करीब होते हो 
प्रेरणा बनकर
प्रदीप्त करते हो
ज्योति बनकर

दिख भी जाते हो
तो रहते हो 
आड़ में सतरंगों के
पानी में ..प्रतिबिम्बों में

गर कभी
खुद ही अपना
परिचय बताते,
जवाब बनकर 
चेहरा दिखाते 
तो सोंचो ..
कितना अच्छा था !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना...

    दिख भी जाते हो
    तो रहतो हो ...यहाँ "रहते" हो कर लीजिए.

    सादर
    अनु

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. सच ! कितना अच्छा होता ..

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  4. http://urvija.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_2237.html

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  5. वाह ... बेहतरीन

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बताएं , कैसा लगा ?? जरुर बांटे कुछ विचार और सुझाव भी ...मेरे अंग्रेजी भाषा ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें, मैंने लिखा है कुछ जिंदगी को बेहतर करने के बारे में --> www.santoshspeaks.blogspot.com .