चलो !
कहीं दूर चलें
बहुत दूर चलें
वहाँ चलें
जहाँ.. चेहरे हों
घर हो,
प्रकृति हो,
जीवन हो
पर.. न कोई मेरा हो
न ही कोई तुम्हारा हो
बस बज रहा हो संगीत
उस जहाँ में..
दिलों के साथ-साथ धडकने का !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३.
कहीं दूर चलें
बहुत दूर चलें
वहाँ चलें
जहाँ.. चेहरे हों
घर हो,
प्रकृति हो,
जीवन हो
पर.. न कोई मेरा हो
न ही कोई तुम्हारा हो
बस बज रहा हो संगीत
उस जहाँ में..
दिलों के साथ-साथ धडकने का !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३.
सुन्दर , कोमल और प्यारे एहसास .
ReplyDeleteचलो .. चलें.
अनुभूति श्रीवास्तव
सुन्दर भाव
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