Saturday, January 12, 2013

चलो !

चलो !
कहीं दूर चलें
बहुत दूर चलें
वहाँ चलें
जहाँ.. चेहरे हों
घर हो,
प्रकृति हो,
जीवन हो
पर.. न कोई मेरा हो
न ही कोई तुम्हारा हो
बस बज रहा हो संगीत 
उस जहाँ में..
दिलों के साथ-साथ धडकने का !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३.



2 comments:

  1. सुन्दर , कोमल और प्यारे एहसास .

    चलो .. चलें.

    अनुभूति श्रीवास्तव

    ReplyDelete

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