इस उम्मीद में
कब तक ...
और
कैसे जीयें?
सभी कहते हैं
बस मन रखने भर को
कि दुनिया बड़ी सुन्दर है
दिखती नहीं
पर है ..कहीं
शायद उस पार कहीं
पर अपनी फितरत है
जो कहती है
कि नाउम्मीद होकर
अब और नहीं जाता..
आज फिर सोंच में हूँ,
पशोपेश में हूँ
बदलूं इस दुनिया को?
या अपनी फितरत ही बदल डालूँ?
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३
कब तक ...
और
कैसे जीयें?
सभी कहते हैं
बस मन रखने भर को
कि दुनिया बड़ी सुन्दर है
दिखती नहीं
पर है ..कहीं
शायद उस पार कहीं
पर अपनी फितरत है
जो कहती है
कि नाउम्मीद होकर
अब और नहीं जाता..
आज फिर सोंच में हूँ,
पशोपेश में हूँ
बदलूं इस दुनिया को?
या अपनी फितरत ही बदल डालूँ?
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३
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