क्षितिज से कुछ दूर सही
धुंधले ..उभरते सायों में
तेरी तरफ भाग रहा
मैं भी हूँ !
हाथों में पुष्प लिए..
उल्लसित मन लिए
आतुर हूँ...
मिलने को !
मुझको है ..भान तेरा
तू भी पहचान मुझे
कुछ कदम मैं चलूँ!
कुछ कदम तुम चलो!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३
धुंधले ..उभरते सायों में
तेरी तरफ भाग रहा
मैं भी हूँ !
हाथों में पुष्प लिए..
उल्लसित मन लिए
आतुर हूँ...
मिलने को !
मुझको है ..भान तेरा
तू भी पहचान मुझे
कुछ कदम मैं चलूँ!
कुछ कदम तुम चलो!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३
पहचान की डोर थामे कुछ कदम कम होते दोनों ओर से!
ReplyDeleteसुन्दर!
दोनों चलें तो दूरियाँ अधूरी रह जाए..पल में मिट जाएँ...
ReplyDeleteवाह!!
अनु
कुछ कदम दोनों बढे और मिले ..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
:-)
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteअति सुन्दर ..नवरात्री की बहुत बहुत शुभकामनाएं..
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