बढती जा रही है
दूरी..
हर रोज
शहरों की
गाँव से !
हो रहा है
अलग
हर रोज
एक सगा
अपने ही दूसरे से !
मैंने कई बार
ऐसा सुना है
शहरी स्कूलों के बच्चे
गाँव में
बस रहे भाई को
ड्राईवर का सगा बता रहे थे !
Copyright@संतोष कुमार "सिद्धार्थ", २०१३
दूरी..
हर रोज
शहरों की
गाँव से !
हो रहा है
अलग
हर रोज
एक सगा
अपने ही दूसरे से !
मैंने कई बार
ऐसा सुना है
शहरी स्कूलों के बच्चे
गाँव में
बस रहे भाई को
ड्राईवर का सगा बता रहे थे !
Copyright@संतोष कुमार "सिद्धार्थ", २०१३
सोचने वाली बात है ये , लेकिन तंत्र ही ऐसा है कि ये होना ही है
ReplyDeleteअति-आधुनिक मानसिकता कई बार सोंचने पर विवश करती है , पर ये हो रहा है !
ReplyDeleteओह! ताज्जुब होता है ऐसी मानसिकता पर..
ReplyDeleteदिखावे के मारे है सारे....
ReplyDeleteदुखद है!!!
अनु
कड़वी सच्चाई
ReplyDeleteachhi kavita... samay ko chot karti... marmik
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