कभी - कभी
सत्य भी
भाव रूप छोड़ कर
पात्र रूप में
खोज रहा होता है
हमें ..वैसे ही
जैसे हम उसे
और हम दोनों ही
आस-पास होते हैं
गुजर जातेहैं
अगल-बगल से
बस ..पहचान नहीं पाते !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१४
सत्य भी
भाव रूप छोड़ कर
पात्र रूप में
खोज रहा होता है
हमें ..वैसे ही
जैसे हम उसे
और हम दोनों ही
आस-पास होते हैं
गुजर जातेहैं
अगल-बगल से
बस ..पहचान नहीं पाते !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१४
सुन्दर लिखा है..
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