तू...
कविता है
गीत है
छंद है
भाव है
बसी रहती हो
शब्दों की लड़ियों में
पुस्तकों के पन्नों में
मैं ...
आवरण हूँ
पृष्ठभूमि हूँ
रक्षक हूँ
तुम्हारे सौंदर्य का...
तुम सहज स्वप्न हो
मैं यथार्थ हूँ..
बस ..
यही परिभाषा है
इतना सा है
मेरा - तुम्हारा रिश्ता !
Copyright@ संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१४.
कविता है
गीत है
छंद है
भाव है
बसी रहती हो
शब्दों की लड़ियों में
पुस्तकों के पन्नों में
मैं ...
आवरण हूँ
पृष्ठभूमि हूँ
रक्षक हूँ
तुम्हारे सौंदर्य का...
तुम सहज स्वप्न हो
मैं यथार्थ हूँ..
बस ..
यही परिभाषा है
इतना सा है
मेरा - तुम्हारा रिश्ता !
Copyright@ संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१४.
बहुत सुंदर
ReplyDeleteThank you Onkar ji !
Deleteबेहद खूबसूरत रिश्ता.....लेखनी का ये रिश्ता यूं ही कायम रहे
ReplyDeleteThank you for encouragement !
ReplyDelete