Thursday, September 8, 2011

एक पत्थर


मैं तो हूँ
एक पत्थर,
हर लम्हा
कोई आता है
बैठता है,.. मेरे पास
फिर छूकर,
अपना
नाम लिखकर
चला जाता है
कोई चॉक से,
कोई चाकू से
कुरेदकर
एक निशान
बना कर चला जाता है
मेरे हृदय पर
सदियों के लिए.....

Santosh, 06.04.08
Copyright@Santosh Kumar, 2008

It was very spontenous poem, I was enjoying dinner with my wife and friend at a Restaurant, during the conversation, my friends shared a "Shayari", and then I just wrote a new poem.... you won't believe, it was written on a tissue paper, my wife has still preserved the paper.

3 comments:

  1. I still remember the moment, You just written it in 5 minutes. Very nice.

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  2. Bahut Sundar Santosh Ji.. Badhai.. Main aata rahunga...

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  3. पत्थर का कथ्य सुंदरता से अभिव्यक्त हुआ है!

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बताएं , कैसा लगा ?? जरुर बांटे कुछ विचार और सुझाव भी ...मेरे अंग्रेजी भाषा ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें, मैंने लिखा है कुछ जिंदगी को बेहतर करने के बारे में --> www.santoshspeaks.blogspot.com .