Sunday, September 25, 2011

जिंदगी.. नये जमाने की.

१.
नये जमाने के
नये हैं तौर-तरीके
बदले-बदले से हैं
जिंदगी के सलीके


तंग दरवाज़ों में,
बंद खिड़कियों में
एअर-कंडिसनर की हवा भली
बिना मोबाइल-अलार्म के
कितनों की नींद ही ना खुली..


ज़रूरी हो गयी गोली
चैन से सोने के लिए
उससे भी ज़रूरी
सुबह की चाय के लिए.


२.
घर से दफ़्तर
दफ़्तर से घर
पता ही ना चले
क्या होता बाहर


पड़ोस मे कौन आया
किसने न्योता भिजवाया
कौन टीचर बच्चों को पढ़ाए
किस नंबर की बस उसे स्कूल ले जाए


ट्यूब-लाइट की चकाचौंध में
जिंदगी जगमगाए..
देखना हो सूरज को..
तो हिल-स्टेशन जाएँ.


Copyright@Santosh kumar, 2011
Picture courtesy : Google Images

8 comments:

  1. Perfect thinking and observations...
    People will have to think over it..

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  2. आधुनिक जिंदगी की विसंगतियों का सुंदर चित्रण.

    Sameer

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  3. वाह.......बहुत सुन्दर........

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  4. @P Dwivedi : I feel that Human Life is getting Mechanical and Automated day by day. Thanks for appreciation.

    @Sameer : Thanks.

    @Imraan Ansari : Thank You Brother, I am waiting for "Bulleshah Literature" blog from you.

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  5. @संतोष भाई मैं ज़रूर कोशिश करता पर क्या करूँ 'बुल्लेशाह' की हीर और उनकी काफियाँ का मैं खुद मुरीद हूँ पर बहुत तलाश करने पर भी उनकी कोई किताब हिंदी में नहीं मिल पाती| पंजाबी में उनका बहुत साहित्य उपलब्ध है और दुर्भाग्य से मुझे पंजाबी नहीं आती|

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  6. तंग दरवाज़ों में,
    बंद खिड़कियों में
    एअर-कंडिसनर की हवा भली
    बिना मोबाइल-अलार्म के
    कितनों की नींद ही ना खुली..

    मेरी घरेलु भाषा भोजपुरी है.. इच्छा हुई की भोजपुरी में प्रतिक्रिया दूँ...

    बहुत बढ़िया लिखले बनी.. आभार.. राउर प्रतिक्रिया के हमरो बा इंतिजार.. एक बेर जरूर आइब.. राउर स्वागत बा...

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  7. वहां भी नींद आ जाए तो फिर पछताए..

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बताएं , कैसा लगा ?? जरुर बांटे कुछ विचार और सुझाव भी ...मेरे अंग्रेजी भाषा ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें, मैंने लिखा है कुछ जिंदगी को बेहतर करने के बारे में --> www.santoshspeaks.blogspot.com .