कुछ घुल गया है पानी में,
है दूषित कर गया
कोई चमन की हवा को
न जाने क्या..शायद कोई
नया रोग सा लगा है
इस ज़माने को
नोचने में कमीजें
एक - दूसरे की
खुश हो रहे हैं
लोग कई
बचने की कोशिश में
जो छुपे किसी के पहलू में
हैं उनकी चादरें
पहले से कालिख में सनी हुईं
जिधर देखो
रंगे सियारों की
फ़ौज सी खड़ी है
किसके साथ खड़ा होऊं?
आज नहीं तो कल ..
रंग तो सबकी उतरी है
काट कर
बांटने में
व्यस्त हैं जोडने वाले
जो हैं समर्थ
ओढ़ कर मुफलिसी
जड़ रखे हैं
खुद के मुंह पर ताले
ऐ खुदा , हे भगवान !
मत हँस..इन गरीबों पर
रहम कर
भेज कोई रसूल अपना
बहुत हो चुका...
अब सब्र नहीं होता ,
खुद से अपनो का इलाज नहीं होता !!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
है दूषित कर गया
कोई चमन की हवा को
न जाने क्या..शायद कोई
नया रोग सा लगा है
इस ज़माने को
नोचने में कमीजें
एक - दूसरे की
खुश हो रहे हैं
लोग कई
बचने की कोशिश में
जो छुपे किसी के पहलू में
हैं उनकी चादरें
पहले से कालिख में सनी हुईं
जिधर देखो
रंगे सियारों की
फ़ौज सी खड़ी है
किसके साथ खड़ा होऊं?
आज नहीं तो कल ..
रंग तो सबकी उतरी है
काट कर
बांटने में
व्यस्त हैं जोडने वाले
जो हैं समर्थ
ओढ़ कर मुफलिसी
जड़ रखे हैं
खुद के मुंह पर ताले
ऐ खुदा , हे भगवान !
मत हँस..इन गरीबों पर
रहम कर
भेज कोई रसूल अपना
बहुत हो चुका...
अब सब्र नहीं होता ,
खुद से अपनो का इलाज नहीं होता !!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२