मेरे लिए
बड़ा आसान सा है..
हर रोज ..तेरे सपने देखना
बस...
गुलाबी कागज़ पर
उलटे हाथ से
तुम्हारा नाम लिखकर ..
तकिये के नीचे
डाल देता हूँ.
पर.. जरा सी
मुश्किल रहती है...
नहीं समझा पाता
घर में अम्मा को
सुबह-सुबह...
मेरी उनींदी और
सूजी हुई
आँखों का राज़..
Copyright@Santosh kumar
(मेरी कविता संग्रह : आधा-अधूरा प्यार से)
बड़ा आसान सा है..
हर रोज ..तेरे सपने देखना
बस...
गुलाबी कागज़ पर
उलटे हाथ से
तुम्हारा नाम लिखकर ..
तकिये के नीचे
डाल देता हूँ.
पर.. जरा सी
मुश्किल रहती है...
नहीं समझा पाता
घर में अम्मा को
सुबह-सुबह...
मेरी उनींदी और
सूजी हुई
आँखों का राज़..
Copyright@Santosh kumar
(मेरी कविता संग्रह : आधा-अधूरा प्यार से)
ख़ूबसूरत एहसास के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमतलब इतनी खूबसूरती से आपने रात का किस्सा बयान किया है कि मैं क्या कहूं......आफरीन.....अब तो मैंने आपका फोलोवर बन गया हूँ सो आता रहूँगा!
ReplyDeleteSantosh jee, very lovely small poem, like an innocent child..
ReplyDeletebahut hi pyrai si kavita....
वाह.....बहुत खूब|
ReplyDeleteजो फिर ख्वाब देखकर राज़ बनेगा ..आज.
ReplyDeleteइस पृष्ठ की सबसे अच्छी कविता यही लगी।
ReplyDelete@बबली : शुक्रिया..मैं और भी बेहतर लिखने की कोशिश करूँगा.
ReplyDelete@सुरेन्द्र : ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया. आप की रचनाएँ भी बड़ी अच्छी हैं.
@P Dwivedi : Praveen ji, love is very precious feeling, real love is always innocent. Thanking you for appreciation.
बहुत ही खूबसूरत है इन उनींदी सूजी हुई आँखों का राज़..
ReplyDeleteखूब.
ReplyDeleteबहुत ही खूब.
आपको पढ़ा अच्छा लगा ,लगनशील प्रयास ,सपनों को पंख मिले , मेरी शुभकामनायें आपके साथ सदैव ..../ भाषा अनुशीलन , व परिमार्जन का ख्याल मनः स्थिति को संतुलित रखता है .....शुक्रिया जी /
ReplyDeleteबस...
ReplyDeleteगुलाबी कागज़ पर
उलटे हाथ से
तुम्हारा नाम लिखकर ..
तकिये के नीचे
डाल देता हूँ.
waah
बहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDelete@संध्या शर्मा : सराहना के लिए धन्यवाद.
ReplyDelete@विशाल : शुक्रिया.
@uday Veer Singh : सुझाव और शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद.
ReplyDelete@ रश्मि प्रभा जी : मेरी कविता के अवलोकन के लिए धन्यवाद.
ReplyDelete@ वर्ज्य नारी स्वर : शुक्रिया.
खूबसूरती से उकेरा है एहसासों को.
ReplyDeleteवाह-वाह क्या बात है बहुत खूब शानदार प्रस्तुति ...समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
पढ़ा…निर्दोष और शुरूआती दौर की…शायद प्रदर्शन ठीक नहीं होता वैसे…
ReplyDeleteसुंदर।
ReplyDeleteगहरी भावाभिव्यक्ति।
क्या सच इतना आसान होता है , अपनी प्रेयसी के सपने देखना !!
ReplyDeleteअच्छी रचना है.
मनोहर
is sundar kavita ko padvane ke liye apka abhar
ReplyDeleteashok andre
सुन्दर एहसास!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बात कही आपने...कितना मुश्किल होता है औरों को समझाना अपनी सूजी और लाल आँखों का राज़.
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