Thursday, July 30, 2015

कुछ बातें!

मैं सोंचता हूँ...
क्यों ना
लिख लूं
और बाँच भी लूं
खुद ही 
कुछ चिट्ठियाँ
मेरे - तुम्हारे नाम की !

क्या होगा..
थोडा मन हल्का होगा
थोडा भारी होगा..
याद आएँगी
कुछ बातें
बरसों पुराने  शाम की !

ऐसे में ही, कहीं दूर..
कोई बादल
भिगो जायेगा 
तुम्हारे झरोखे के परदे 
शायद ...तब कहीं ,
तुम्हे भी बोध होगा
और लिखोगी सच में 
एक खत मेरे नाम की !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ',2015