Friday, February 22, 2013

अंतराल

वक्त की गिनती 
रोज बढाती जाती है
संख्या..
दिन, महीनों और सालों के,
हमारे विछोह के...
लोग ताने कसते है
समय-अंतराल की दुहाई देकर
पर मैं कहता हूँ,
हाँ सच-मुच जानता हूँ
रोज कम हो रहे हैं
अंतराल ..
दिन, महीने और साल
बेहद करीब आ रहे हैं दिन ,
क्षितिज के पार
चैन से,
बेख़ौफ़ .. बेफिक्र होकर मिलने के !
 
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३.

Thursday, February 14, 2013

पिताजी का स्वेटर

जीवन की डगर पर 
धूप -छांव में,
सर्द लम्हों  में ,
अकेले सफर में
जब भी कभी
मेरा मन डरता है
कदम बढ़ाते ..
घबराता है
मैं ..आँखे बंद कर
थके शरीर को संभाल 
पिताजी का स्वेटर 
पहन लेता हूँ.
और फिर ..
आत्मविश्वास से भरा मन ले 
तेज - मजबूत कदमों से
दुनिया जीतने निकल पड़ता हूँ.

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ' , २०१३