एक तिनका
न जाने क्यूँ
बाकी रह गया
घोंसले में
सजने से
जी रहा है..
आजकल डर–डर के
गिन रहा है
सांसे.. इस चिंता में
हवा उड़ा न ले जाए
पानी बहा न दे
धुप जला न दे
मिट्टी दफ़न न कर दे
उसके अस्तित्व को..
सोंचता रहता है..
अब कैसे निहारेगा ?
नजदीक से
प्यारी चिड़िया को ,
कैसे देखेगा ?
चिड़िया के बच्चों को,
चहकते हुए,
पंख फैलाते हुए,
जीने का अंदाज..
सीखते हुए .
Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०१२
bahut sundar abhivyakti
ReplyDeleteOnkar ji, Thank you valuable comments. Happy Holi!
Deleteबहुत गहन चिंतन...सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteधन्यवाद कैलाश जी.. होली की शुभकामनाएं!.
Deleteबहुत खूब...
ReplyDeleteघोसले से अलग क्या अस्तित्व है तिनके का???
कुछ भी तो नहीं..
धन्यवाद विद्या जी.. होली की शुभकामनायें.
Deleteबहुत खूब... गहरा चिंतन...
ReplyDeletebahut sundar..kabhi kabhi kuch cheezen dara hi deti hai..chaahe wo kitne kareeb hi kyun na ho..!
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut hee sundar bhaav....!
ReplyDeleteवाह....बहुत खुबसूरत ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!!!!!
ReplyDeleteतिनके की पीड़ा को बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने ! उत्तम रचना !
ReplyDeleteसहज शब्दों में सुन्दर भावाभिव्यक्ति...बधाई...।
ReplyDeleteइतने अच्छे-सच्चे विचार.... बधाई इस सृजन के लिए.
ReplyDeleteअच्छी कविता है.
ReplyDeletesunder abhivakti
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