Saturday, December 31, 2011

नव् वर्ष की शुभकामना !


लो भई
आ गई
नयी सुबह
नव वर्ष की
जीवन के
नए सत्र की

खुशबू सी है फैली
चहुंओर ..
नए पुष्प की
नए कोंपल की
नवीन पल्लव की

फिर से
शुरू करें
जीना ...
इस जीवन को
उल्लास से
नए जोश से
बदलें
कैलेंडर .. डायरियां
अपने घर की.

आओ !
मिल लो गले
सुन लो!
बाँट लो !
मित्रों में ..
अपनो में
परिजनों में
बात मेरे दिल की..
दिल के आह्लाद की .

आप सबों को नूतन वर्षाभिनंदन, ,  वर्ष २०१२ की मंगलकामनाये.
Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०१२  

Friday, December 23, 2011

प्यार की बातें


तुम
भूल जाना
जान बूझ कर
घर की अलार्म घडी में चाबी भरना
और ..
टांग देना
परदेश से भेजी
मेरी चिट्ठियों का बस्ता
घंटाघर की घडी के
घंटे की चरखी में

मैं भी
कोशिश में हूँ
चुरा लूँगा
सारे घोड़े
सूरज के अस्तबल से
जानती हो..
जगह देख रखी है
झील के करीब
हरसिंगार के बागान के पीछे
बांस के झुरमुट में छिपे
विशाल बरगद की गोद में

तुम तो रहोगी ना..
मेरा साथ देने को
पक्की खबर है..
अरसे बाद
आज से तीसरे दिन
चाँद..गगन से उतरकर
चांदनी से मिलने को ,
घंटों बातें करने को
आने वाला है..
फिर से कहता हूँ
भूलना नहीं
अभी से लगा लो
कैलेंडर में
मेहंदी के सुर्ख निशान.

Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०११

Friday, December 16, 2011

प्रेमगीत


जब भी मैं 
लिखना चाहूँ 
कोई नया..प्रेमगीत
पूछता है 
हर अगला हरफ
मुझसे बार-बार
तेरी तस्वीर की तरफ
इशारे करके
इसमें तेरा नाम कहाँ है?
इसमें मेरा नाम कहाँ है?
Copyright@संतोष कुमार "सिद्धार्थ", २०११ 

Monday, December 5, 2011

ऐ जिंदगी .....कैसे छोड़ जाऊं तुझे कि दिल अभी भरा नहीं


१.
है कौन
तुझ सी हसीन
इस जहाँ में
तू सुन्दर है
ख्वाबों ..खयालातों से

२.
कभी तो रही
भागती सरपट
मेरे आगे-आगे
और कभी तो
खेलती रही लुका-छिपी
मेरी परछाईयों से

३.
तुझ से शुरू
तुझी से खत्म
रही है कहानी मेरी
कहतें हैं ज्ञानी
बातें बडी –बडी
आत्मा – परमात्मा की
पर मेरी तो
रही है लगन तुझसे ही
कई जन्मों से

४.
हैं जीने को बाकी
अहसास और किरदार कई
गढने हैं कीर्तिमान कई
हाँ सच...
तू यकीन रख..
आऊंगा फिर
जरा थमकर
परदे के पीछे से
जरा सा भेष बदलकर
तेरे ही शहर में
तुझसे मिलने
अलसाती सी ..
लंबी नींद से जगकर

५.
तू भी तो कहती थी
दुहराती थीं
मेरे ही कानो में
मेरे ही गीत...
अभी ना जाओ छोड़ कर
अभी तो दिल भरा नहीं.....




मेरी ये रचना श्रद्धा-सुमन हैं सदी के सबसे जिंदादिल, , , रूमानी , युवा और जीवन को आखिरी सांस तक परिपूर्णता से जीने की कोशिश करने वाले महान अभिनेता ‘देवानंद जी’ के लिए. कल ८८ वर्ष की उम्र में उनका देहांत हुआ . अगर किसी भी सज्जन को मन में कोई संदेह हो, , वो एकबार गाईड फिल्म जरुर देखें.

उनकी फिल्मो के कुछ गाने :


है अपना दिल तो आवारा .. न जाने किस पे आएगा

एक घर बनाऊंगा तेरे घर के सामने

खोया खोया चाँद..खुला आसमां

पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले..झूठा ही सही

यहाँ कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ

अभी ना जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया..



COPYRIGHT@  संतोष कुमार सिद्धार्थ   

Sunday, November 27, 2011

आधे – अधूरे से हम

कोई शाम से
सुबह की रौशनी 
मांग कर देखे
दिन से.. 
रात की शीतलता
मांगे चाँदनी से 
तपती दुपहरी
और पुरवाई से
पछिया की महक
नहीं मिलती..
ना मिलेगी
सभी हैं
कुछ मायनों में
आधे – अधूरे
हैं दो पहलू
एक ही सिक्के के
कितने करीब ..
पर कितने दूर

मैं सोंच में था
पर कोई तो
आगे बढता,
समझाता ..
सांत्वना देता मुझे
मैं मांग रहा था
खुदा से..
इंसानियत की भीख
और जाने क्यूँ
उम्मीद में था
इंसानों से ..खुदाई की

मुद्दतों से..
टीस है मन में
खुदा..सीने से बाहर आकर
अपना चेहरा क्यूँ नहीं दिखाता??? 
क्यूँ लगाता नहीं गले????? 
हर दूसरे बंदे को..
जबकि है छिपा–बसा
नूर-ऐ-खुदा सभी के अंदर !!
Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०११ 

Monday, November 7, 2011

प्रेम की सीमा

आखिर मान ली मैंने
तुम्हारी बात..
करने को सीमित
अपना प्यार
आज तक ,    अभी-तक
इस जनम भर के लिए.

चलो !
छोड़ आयें
आज गंगा में
मेरे – तुम्हारे खत,
ग्रीटींग-कार्ड,
इत्र की शीशियाँ ,
कुछ सूखे फूल
नाम लिखे गिलाफ
और रूमाल भी

आओ !
अर्पित कर दें
इन्ही लहरों में
दुनिया के डर से 
जीए हुए आधे – अधूरे ..
हसीन लम्हे भी.

पर मैं कैसे रोक पाऊंगा ?
और कौन रोक सकता है ??
निश्छल , निर्बाध और निडर..
असीम और पवित्र प्रेम के असर को ...
तुम्हें भी पता हैं
अब भी लाखों लोग
लगाते हैं रोज डूबकी..
इसी गंगा के पानी में !!

Copyright@ संतोष कुमार सिद्धार्थ”, २०११
(मेरे संकलन – आधा-अधूरा प्यार से)

Thursday, October 27, 2011

नेता जी उवाच..

(१)
मैं हूँ..
आपका जन-प्रतिनिधि,
जन सेवक,
जनता का,
जनता के लिए..
जनता द्वारा चुना गया.
गिरवी हैं..
जनता के
वोट भी.. नोट भी,
और उनके सुख-चैन भी
मेरी तिजोरी में.

(२)
आऊँगा.. बार-बार
पास तुम्हारे ..
बिना हिचक के,
बिना शर्म के
हाथ जोड़े, झोली फैलाये
करने नवीनीकरण ..
जन-सेवा के ठेके का.

(३)
हो जायेगी
मंत्रिमंडल में,
जगह भी पक्की..
अबकी बार,
भूलना मत
मेरा नया निशान...
हेलीकॉप्टर से थैले गिराता
तुम्हारा नेता महान !!

Copyright@संतोष कुमार,२०११  

Thursday, October 20, 2011

आओ जलायें दीये .. आस्था और विश्वास के.


सुनो.. मेरे भाई
भाई कुम्हार !
मेरी छोटी सी विनती
कर लो स्वीकार
भूलूँगा नहीं..
कभी तेरा उपकार

अबकी बार..
जो मिटटी लाना
दीये बनाने को
उसमें है मुझे मिलाना
और चार मुठ्ठी मिटटी
बच्चों का मन रखने को

क्योंकि..अब भी शेष है..
आस्था और विश्वास
मन में हम-सबके ,
कि कुछ तो प्रभाव छोड़ेगी ..
मुठ्ठी भर पवित्र मिटटी
लाया हूँ जिसे 
मस्जिद, मंदिर, गिरिजा और गुरूद्वारे से

ताकि मैं भी..
जला सकूं करोडों दीये
आत्मीयता और प्यार के,
सदाचार और सद्भाव के
मन में मेरे-तुम्हारे,
और ह्रदय में हम-सबके

मेरे कुम्हार भाई..
करना मदद मेरी ..
कि हम जला सकें दीये,
आस्था और विश्वास के.

Copyright@Santosh kumar, 2011

आप सबको पावन ज्योतिर्मय पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!!. प्रभु कृपा से आपके जीवन में उल्लास और सुख-शांति हमेशा बनी रहे .
My new post of English Blog with Diwali Greetings : Happy Diwali !!

Photo Courtesy : Google Images

Wednesday, October 12, 2011

राधिका के कृष्ण !





(१)
मैं तो ..
मुसाफिर था
हूँ अब भी ,
कर्मयोगी मुसाफिर 
सफर-दर-सफर,
गोकुल से मथुरा,
मथुरा से हस्तिनापुर





(२)
करने थे काम कई
ओढनी थीं 
जिम्मेवारियां नयी  
फिर भी रहा..
सौ प्रतिशत डूबा..
हर रिश्ते में ,
हर जगह, सबके संग
अब मेरी संगिनी, 
रुक्मिणी-सदृश.. 
जो मेरे साथ है
तो फिर, मेरी चिंता छोडो ..
तेरा मन, अब भी रहता क्यूँ उदास है?



(३) 
तुम्हें ही तो..
हमेशा से..पसंद थे,
राधिका के कृष्ण !
किसी ने भला,
ह्रदय में झांक कर..
कृष्ण से..
ये नहीं पूछा ?
राधिका एवं मीरा में..
और हजारों पटरानियों में
कृष्ण की ..
अपनी पसंद कौन ??



Copyright@Santosh Kumar, 2011
(मेरे कविता संग्रह : आधा-अधूरा प्यार से)
Picture Courtesy : Google Images

Thursday, October 6, 2011

तेरे सपने

मेरे लिए
बड़ा आसान सा है..
हर रोज ..तेरे सपने देखना


बस...
गुलाबी कागज़ पर 
उलटे हाथ से
तुम्हारा नाम लिखकर ..
तकिये के नीचे
डाल देता हूँ.


पर.. जरा सी
मुश्किल रहती है...
नहीं समझा पाता 
घर में अम्मा को
सुबह-सुबह...
मेरी उनींदी और
सूजी हुई
आँखों  का राज़..


Copyright@Santosh kumar
(मेरी कविता संग्रह : आधा-अधूरा प्यार से)





Friday, September 30, 2011

शैतान का साया

शैतान का साया
है चंहुओर छाया
उसकी कोई...
जाति नहीं
धर्मं नहीं
न कोई क्षेत्र विशेष
न कोई रंग
मुझमें ..तुझमें..
भी हैं उसके अंश



जब भी है मन के अंदर
उबता.. अकुलाता   
जरा सा बल पाकर
भाई से लडता
पडोसी से भिड़ता
धमाके करता,
अपहरण करता
आपस की भेद-भाव बढाता


जन-मानस में
कोहराम मचाता
लोगों का क्रंदन सुनकर
खिलखिलाता.. अट्टहास करता
और ..भूल जाता
उसका भी तो घर है
बच्चे हैं
बूढी अम्मा है
जो है ताक रहे..
उसकी राह..
घर लौटने का
अपलक.. अश्रुभरी आँखों से.

Copyright@Santosh Kumar, 2011

आइये, मिल-जुल कर आपस में सद-भाव और प्रेम का संचार करें. और मन में बैठे घृणा, द्वेष, क्रोध, भ्रष्टाचार भेदभाव रूपी शैतान के अंश को दूर भगाएं.



Sunday, September 25, 2011

जिंदगी.. नये जमाने की.

१.
नये जमाने के
नये हैं तौर-तरीके
बदले-बदले से हैं
जिंदगी के सलीके


तंग दरवाज़ों में,
बंद खिड़कियों में
एअर-कंडिसनर की हवा भली
बिना मोबाइल-अलार्म के
कितनों की नींद ही ना खुली..


ज़रूरी हो गयी गोली
चैन से सोने के लिए
उससे भी ज़रूरी
सुबह की चाय के लिए.


२.
घर से दफ़्तर
दफ़्तर से घर
पता ही ना चले
क्या होता बाहर


पड़ोस मे कौन आया
किसने न्योता भिजवाया
कौन टीचर बच्चों को पढ़ाए
किस नंबर की बस उसे स्कूल ले जाए


ट्यूब-लाइट की चकाचौंध में
जिंदगी जगमगाए..
देखना हो सूरज को..
तो हिल-स्टेशन जाएँ.


Copyright@Santosh kumar, 2011
Picture courtesy : Google Images

Sunday, September 18, 2011

शाम

हर रोज़
शाम आती है
मेरी परछाई से
छिप कर
तुम्हारी परछाई से
मिलने..
बाँटने सुख-दुख
मेरे-तुम्हारे
और
अधूरे वादे.. 

करके जाती है
मुझे तन्हा ..
मेरी सहमी हुई
यादों के भरोसे.

copyright@Santosh kumar, 2011
Picture Courtesy : Google Images.

Saturday, September 10, 2011

काश! ऐसा होता!


कितना अच्छा होता..
अगर तू
नन्ही सी बदली होती


और मैं
मस्त हवा का झोंका होता
तब.. तुझे
तुझसे पूछे बिना
कहीं भी
उड़ा ले जाना
कितना आसान होता!!
काश! ऐसा होता!

Copyright@Santosh Kumar, 2011


शब्दार्थ
बदली = बदरी, बादल का छोटा सा टुकड़ा

Post Script : It was one of my very first poems, when I just started writing about my innocent wishes and dreams.



Thursday, September 8, 2011

एक पत्थर


मैं तो हूँ
एक पत्थर,
हर लम्हा
कोई आता है
बैठता है,.. मेरे पास
फिर छूकर,
अपना
नाम लिखकर
चला जाता है
कोई चॉक से,
कोई चाकू से
कुरेदकर
एक निशान
बना कर चला जाता है
मेरे हृदय पर
सदियों के लिए.....

Santosh, 06.04.08
Copyright@Santosh Kumar, 2008

It was very spontenous poem, I was enjoying dinner with my wife and friend at a Restaurant, during the conversation, my friends shared a "Shayari", and then I just wrote a new poem.... you won't believe, it was written on a tissue paper, my wife has still preserved the paper.

Friday, August 26, 2011

शुभ विदा


लो मैं
फिर बिछड़ता हूँ
तुझ से
तेरे गेसूओं के साए से
तेरी गली, तेरे सहर से
पर भूलना नहीं
आऊंगा फिर से
भागकर हर बार
तेरी बाहों के
मौन निमंत्रण पर
तब तक के लिए
अपनी नम सुरमई आँखों से
दो मुझे
एक और शुभ विदा!!

copyright@Santosh kumar, 2011

Wednesday, August 24, 2011

तस्वीर


अच्छा है
किसी
तस्वीर से प्यार करना
वो
कभी रूठती नहीं
कभी दूर नहीं जाती
कोई शिकवा नही
बस
रहती है
मेरे सामने
हर दिन, हर पल
अपलक निहारती..मुस्कुराती सी
तो..
अच्छा है ना!
किसी तस्वीर से प्यार करना.

copyright@Santosh kumar, 1995

Saturday, July 16, 2011

चश्मेबद्दूर

चश्मेबद्दूर

मैने सोंचा
तेरी सुरमई आँखो का
थोड़ा सा कजरा चुराकर
इस चाँद को लगा दूं
बहुत घमंड है इसे
अपनी सुंदरता पर..
ताकि इसे किसी की नज़र ना लगे
पर कैसे छिपा रखूं
तुझे अपनी और जमाने की नज़र से.

Wednesday, July 13, 2011

ओ लाजवंती !

क्यूँ है तेरा ये नाम
ओ री! लाजवंती
शर्मो-हया की प्रतिमूर्ति

किसने चाहा है
तुझे इतना,
और क्यूँ तू..
बस स्पर्श से ही
इतना शरमाती.

क्यों न ,
औरों की तरह
संग हवा के
इतलाती.. इतराती.

ज़रा बता तो..
किस प्रीतम के
अहसास से है
तुझे इतनी.. लाज आती.

१२.०५.१९९८

Monday, July 11, 2011

मेरी कविता(१)

ईश्वर

मैने देखा है
ईश्वर को,
हाँ.. उसी का एक रूप
सागर तट पर
मचलते हुए
चलते हुए
रेत के घरौदे बनाते हुए
फूल पत्तो से सजाते हुए
और फिर..
अपने पैरों से तोड़ कर
इठलाते हुए, हंसते हुए
या फिर..
उसे क्रूर लहरों को
सौंप कर जाते हुए.