१.
कोई आवाज दे,
कोई तो याद दिलाये
प्रवासी पक्षियों को
कि मौसम है बीत चला
यहाँ और रहने का,
सूरज ने है फिर से
अपना करवट बदला.
२.
घर पर इंतज़ार कर रहे
अपना पंख फडफडाने को
और बुजुर्ग पक्षी भी
आँखे बिछाए, , राह तक रहे
जीवन अनुभव बांटने को.
३.
कोई संदेशा दे,
याद दिलाये उन्हें
खुशबू अपनी माटी की,
धूप अपने आँगन की .
Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०१२
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
नीड़ पड़ा है सूना...कोई अपना है ताकता बाट तेरी...लौट जा ओ पंछी.....
सादर.
sundar abhivyakti
ReplyDeleteThank you for your valuable comment !
Deleteकहाँ गयी हमारी टिप्पणी ????
ReplyDeleteपरेशान ना हों.. आपकी टिपण्णी बिलकुल दिख रही है!
Deletealag sa....sunder sa....
ReplyDeleteMridula Jee : Thank you for you valuable comments.. do visit again. You're welcome!
Deleteकहीं आपका इशारा प्रवासी नागरिकों की तरफ तो नहीं है?? उन्हें भी अपने वतन की सुध लेनी चाहिए..
ReplyDeleteअंजलि 'मानसी'
दर्द है रचना में ...
ReplyDeleteमन के भाव सुंदरता से उकेरे हैं ....!!
बधाई एवं शुभकामनायें ...!!
धन्यवाद ! आपका आभारी हूँ मेरे पोस्ट को अपने मंच पर स्थान देने के लिए.
ReplyDeleteशाम में बाकी के लिंक्स पढूंगा.
आपकी नयी जिम्मेदारी और कार्यक्षेत्र में तरक्की के लिए शुभकामनायें. आप मेरी रचनाएँ अपने अखबार में छाप सकते हैं.
अनुपमा जी .. धन्यवाद.
ReplyDeleteअक्सर जीवन में ऊँचे लक्ष्य हासिल करने के लिए या कुछ मजबूरियों की वजह से लोगों को परदेशी होना पड़ता है. दर्द तो दोनों पक्ष में है, परदेशियों को भो और घर पर इंतज़ार कर रहे अपनो को भी.
जीवन अनुभव को सुन्दर भाव व शब्द में सजाया है ..जो बहुत कुछ कह रही है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव भरी क्षणिकाएं ....
ReplyDeleteसादर.
कोई संदेशा दे,
ReplyDeleteयाद दिलाये उन्हें
खुशबू अपनी माटी की,
धूप अपने आँगन की .
एक दिन हमें भी अपने मूल निवास 'परम -धान 'जाना है अपना पार्ट भुगता कर .पुराना चोला छोड़कर .रहना नहीं देश बे -गाना है .....
बहुत ही सुन्दर प्रवासी पक्षियों के माध्यम से गहरा सन्देश देती है पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत खूब ... तीनों संवेदनशील ....
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ....
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति...
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