Wednesday, April 25, 2012

प्रार्थना

हे प्रभु!
तू
गड़ेरिया बनकर
धरती पर आ
ले चल अपने साथ 
मैं थक गया...
अपनी करते-करते 
आदमी बन, 

चल हाँक ले चल
मुझ मेमने को
तू ही जाने
कौन हूँ,
कहाँ से आया हूँ,
और 
कहाँ मुझे जाना है ??


Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.

Friday, April 20, 2012

जिन्दगी

जिन्दगी..
दो मुहें सांप जैसी
बीता कल खींचे पीछे,
खींचे आगे
आनेवाला कल
रहे पशोपेश में वर्तमान
किसकी सुने,
किधर जाए


जीना तो चाहे  वो
भविष्य की डगर पर
संजोये सपनों को
पर उलझा रहे ,
साफ़ करता रहे
खुशियों पर
पड़ी धूल भूत की ...


संशय में है
आज का लम्हा
आज की खुशी
समय की घडी में
रेत सी फिसल ना जाए.

Copyright@संतोष कुमार "सिद्धार्थ", २०१२ 

Friday, April 13, 2012

मिलना ..मेरा - तुम्हारा

जब कभी भी
मेरा  चेहरा
और 
तेरा चेहरा
करीब आते हैं
एक - दूसरे के
और खो देते हैं
कुछ यूँ घूम-मिल कर
अपनी-अपनी पहचान
इस जहाँ में
कहीं न कहीं 
सुबह होती है
शाम होती है
फुहारे पड़ती हैं
खुशबू उडती है
ये धरती
सूरज, चाँद सितारे सभी
सलाम कर रहे होते हैं
अपनी-अपनी अदा से
मुझे और तुझे
और जज्ब कर रहे होते हैं
हमारे अनमोल और अद्भुत 
मिलन के जादू को !


Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ' , २०१२