Tuesday, October 8, 2013

दूरी

बढती जा रही है
दूरी..
हर रोज 
शहरों की
गाँव से !

हो रहा है
अलग 
हर रोज 
एक सगा 
अपने ही दूसरे से !

मैंने कई बार 
ऐसा सुना है
शहरी स्कूलों के बच्चे
गाँव में
बस रहे भाई को
ड्राईवर का सगा बता रहे थे !

Copyright@संतोष कुमार "सिद्धार्थ", २०१३


Sunday, August 25, 2013

पहचान !

क्षितिज से कुछ दूर सही
धुंधले ..उभरते सायों में
तेरी तरफ भाग रहा 
मैं भी हूँ !
हाथों में पुष्प लिए..
उल्लसित मन लिए 
आतुर हूँ...
मिलने को !
मुझको है ..भान तेरा
तू भी पहचान मुझे
कुछ कदम मैं चलूँ!
कुछ कदम तुम चलो!

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३

Sunday, July 7, 2013

सपने !





आओ सपने पिरोयें
मोतियाँ तुम्हारीं
धागे मैं लाया हूँ !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३.

Thursday, May 16, 2013

यादों का मुसाफिर

चाहे आवाज दो
या न दो 
या फिर
ओढ़ लो 
नकाब कोई
मैं यादों का मुसाफिर हूँ
समय की रेत पर
तुम्हारे निशान
ढूंढ ही लूँगा !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३ 

Saturday, April 6, 2013

कुछ अनकही बातें...!

वापस पलट आओ
जहाँ हो
वहीँ से
एकबार देख तो लो
सुन तो लो 
वो सारी बातें 
मेरी जुबान की..
जो बयां कर रही हैं
मेरी आँखें..तुम्हे
तुम्हारी राहों को
अपलक निहारते हुए..!

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३

Saturday, March 23, 2013

भंवरा

वो बस जाना चाहता था
तुम्हारी जुल्फों में
तुम्हारी सांसों में
वो मर-मिटना चाहता था,
तुम्हारी अदाओं पर, 
वो मदहोश था 
तुम्हारे दीदार भर से ..
तूने  भी गलत समझा
यूँ ही झटक दिया 
कि वो एक भंवरा है
बस खुशबू चुराने आया है 
आम भंवरो जैसा...

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३ 

Monday, March 18, 2013

उम्मीद !

इस उम्मीद में
कब तक ...
और 
कैसे जीयें?
सभी कहते हैं
बस मन रखने भर को
कि दुनिया बड़ी सुन्दर है
दिखती नहीं
पर है ..कहीं
शायद उस पार कहीं 
पर अपनी फितरत है
जो कहती है 
कि नाउम्मीद होकर 
अब और नहीं जाता..
आज फिर सोंच में हूँ,
पशोपेश में हूँ 
बदलूं इस दुनिया को?
या अपनी फितरत ही बदल डालूँ?

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३

Friday, February 22, 2013

अंतराल

वक्त की गिनती 
रोज बढाती जाती है
संख्या..
दिन, महीनों और सालों के,
हमारे विछोह के...
लोग ताने कसते है
समय-अंतराल की दुहाई देकर
पर मैं कहता हूँ,
हाँ सच-मुच जानता हूँ
रोज कम हो रहे हैं
अंतराल ..
दिन, महीने और साल
बेहद करीब आ रहे हैं दिन ,
क्षितिज के पार
चैन से,
बेख़ौफ़ .. बेफिक्र होकर मिलने के !
 
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३.

Thursday, February 14, 2013

पिताजी का स्वेटर

जीवन की डगर पर 
धूप -छांव में,
सर्द लम्हों  में ,
अकेले सफर में
जब भी कभी
मेरा मन डरता है
कदम बढ़ाते ..
घबराता है
मैं ..आँखे बंद कर
थके शरीर को संभाल 
पिताजी का स्वेटर 
पहन लेता हूँ.
और फिर ..
आत्मविश्वास से भरा मन ले 
तेज - मजबूत कदमों से
दुनिया जीतने निकल पड़ता हूँ.

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ' , २०१३




Tuesday, January 29, 2013

मैं और तुम !

जब से है..
ये भान हुआ ,
थोडा ज्ञान हुआ
कि तुम ..
बसे हो 
मुझमें भी ..
न जाने कब से ?
अब न मैं हूँ
न अहम है
न कोई वहम है
तुम ही तो हो 
मेरे अंतर में ,
बाहर में ..
यत्र - तत्र ...सर्वत्र !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३ 

Saturday, January 12, 2013

चलो !

चलो !
कहीं दूर चलें
बहुत दूर चलें
वहाँ चलें
जहाँ.. चेहरे हों
घर हो,
प्रकृति हो,
जीवन हो
पर.. न कोई मेरा हो
न ही कोई तुम्हारा हो
बस बज रहा हो संगीत 
उस जहाँ में..
दिलों के साथ-साथ धडकने का !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३.