Friday, December 7, 2012

तुम्हारी पहचान !

तुम...
छिपे फिरते हो
रहस्यों की छाया में
ओढ़े रहते हो
सवालों के नकाब ..

करीब होते हो 
प्रेरणा बनकर
प्रदीप्त करते हो
ज्योति बनकर

दिख भी जाते हो
तो रहते हो 
आड़ में सतरंगों के
पानी में ..प्रतिबिम्बों में

गर कभी
खुद ही अपना
परिचय बताते,
जवाब बनकर 
चेहरा दिखाते 
तो सोंचो ..
कितना अच्छा था !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२