वक्त की गिनती
रोज बढाती जाती है
संख्या..
दिन, महीनों और सालों के,
हमारे विछोह के...
लोग ताने कसते है
समय-अंतराल की दुहाई देकर
पर मैं कहता हूँ,
रोज कम हो रहे हैं
अंतराल ..
दिन, महीने और साल
बेहद करीब आ रहे हैं दिन ,
क्षितिज के पार
चैन से,
बेख़ौफ़ .. बेफिक्र होकर मिलने के !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१३.