Friday, August 26, 2011

शुभ विदा


लो मैं
फिर बिछड़ता हूँ
तुझ से
तेरे गेसूओं के साए से
तेरी गली, तेरे सहर से
पर भूलना नहीं
आऊंगा फिर से
भागकर हर बार
तेरी बाहों के
मौन निमंत्रण पर
तब तक के लिए
अपनी नम सुरमई आँखों से
दो मुझे
एक और शुभ विदा!!

copyright@Santosh kumar, 2011

2 comments:

  1. सुन्दर लिखा है

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  2. My eyes are full of tears after finishing the poetry.

    Jatin Pandey

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बताएं , कैसा लगा ?? जरुर बांटे कुछ विचार और सुझाव भी ...मेरे अंग्रेजी भाषा ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें, मैंने लिखा है कुछ जिंदगी को बेहतर करने के बारे में --> www.santoshspeaks.blogspot.com .