१.
झांक लेना
कभी दायें,
कभी बाएं
कभी पलटकर
पीछे भी...
मैं मिल सकता हूँ
फिर तुमसे
कभी भी..
कहीं भी..
जीवन के लंबे सफर में.
२.
वर्तमान से बिछड्ते हुए
भूत ने कहा..
मुझे भूलना मत,
ना ही मेरे साथ बिताए दिन,
संग जिए, सीखे हुए
जिन्दगी के हजार सबक..
अगर जो ..
बेहतर बनाना है
आने वाला कल ,
वैसे भी तो लौट कर,
सफर खत्म कर
कल तुम्हे भी
मेरे ही पास आना है.
३.
बहती हुई नदिया
कहे पर्वत से..
तुम ऊँचे हो,
छूने को तत्पर हो
गगन की सीमाओं को
पर मैंने भी तो
सींचा है, मापा है
कितने ही भागों में
पृथ्वी की परिमिति को..
फिर भी है तुम्हे
कैसा अभिमान !
अपने - अपने पैमाने में हैं
हम भी श्रेष्ठ !
तुम भी श्रेष्ठ!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.
झांक लेना
कभी दायें,
कभी बाएं
कभी पलटकर
पीछे भी...
मैं मिल सकता हूँ
फिर तुमसे
कभी भी..
कहीं भी..
जीवन के लंबे सफर में.
२.
वर्तमान से बिछड्ते हुए
भूत ने कहा..
मुझे भूलना मत,
ना ही मेरे साथ बिताए दिन,
संग जिए, सीखे हुए
जिन्दगी के हजार सबक..
अगर जो ..
बेहतर बनाना है
आने वाला कल ,
वैसे भी तो लौट कर,
सफर खत्म कर
कल तुम्हे भी
मेरे ही पास आना है.
३.
बहती हुई नदिया
कहे पर्वत से..
तुम ऊँचे हो,
छूने को तत्पर हो
गगन की सीमाओं को
पर मैंने भी तो
सींचा है, मापा है
कितने ही भागों में
पृथ्वी की परिमिति को..
फिर भी है तुम्हे
कैसा अभिमान !
अपने - अपने पैमाने में हैं
हम भी श्रेष्ठ !
तुम भी श्रेष्ठ!
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.