जब से है लौटा
परदेशी घर ..अपने
ढूंढ रहा है ..
अपनेपन का अहसास
घर की दीवारों में,
नए - पुराने चेहरों में,
घूरती निगाहों में
वही पुराना भरोसा
वही विश्वास..
बदली- बदली सी है
हवा भी, फ़िजा भी
हवा में खुशबू तो है ,
पहले सी सनसनाहट भी ,
लेकिन गर्मजोशी नहीं
सिर्फ टंगी तस्वीरे नहीं
बदले हुए हैं देवी -देवता भी,
और तरीके भी
उनकी नुमाइंदगी के...
परदेशी
पशोपेश में है
घर तो उसी का था
पर जाने कैसे?
वक्त के अंतराल में ..
घर का मौसम बदल चुका था !
परदेशी
सोंच में है,
पलटने को है
वापस परदेश ...
कहीं बना न ले
परदेश को ही
देश अपना , घर अपना !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
परदेशी घर ..अपने
ढूंढ रहा है ..
अपनेपन का अहसास
घर की दीवारों में,
नए - पुराने चेहरों में,
घूरती निगाहों में
वही पुराना भरोसा
वही विश्वास..
बदली- बदली सी है
हवा भी, फ़िजा भी
हवा में खुशबू तो है ,
पहले सी सनसनाहट भी ,
लेकिन गर्मजोशी नहीं
सिर्फ टंगी तस्वीरे नहीं
बदले हुए हैं देवी -देवता भी,
और तरीके भी
उनकी नुमाइंदगी के...
परदेशी
पशोपेश में है
घर तो उसी का था
पर जाने कैसे?
वक्त के अंतराल में ..
घर का मौसम बदल चुका था !
परदेशी
सोंच में है,
पलटने को है
वापस परदेश ...
कहीं बना न ले
परदेश को ही
देश अपना , घर अपना !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
क्या परदेसी क्या घर अपना .... सब हुआ सपना
ReplyDeleteपरदेस होने से पहले ये सोचना जरूरी है की परिवर्तन तो होना ही है ... वापस आ के स्वीकार करना जरूरी है ...
ReplyDeleteधन्यवाद दिगंबर नासवा जी! पर अपने ही घर में एक बड़ा परिवर्तन (जो सोंच से, उम्मीद से परे हो) स्वीकार करना अक्सर मुश्किल होता है.
Deleteएक परदेसी के मनोभावो को समझाने का अच्छा प्रयास ...
ReplyDeleteबाहर की हवा में सांस लेना मज़बूरी है पर हृदय तो अपनी हवा से ही धडकता है..
ReplyDeleteमन भाये तो परदेश
ReplyDeleteलागे जैसे अपना देश!!
घर छोड़ कर परदेश जाना अक्सर एक मजबूरी होती है, परदेशियों की मनः दशा को
व्यक्त करती सशक्त अभिव्यक्ति!
शुभकामनायें.
अंजलि 'मानसी'
परदेसी के दर्द का बेहद सुन्दर चित्रण.
ReplyDeleteशुभकामनायें.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteरचना के अवलोकन के लिए धन्यवाद !
Delete