मैं सोंचता हूँ...
क्यों ना
लिख लूं
और बाँच भी लूं
खुद ही
कुछ चिट्ठियाँ
मेरे - तुम्हारे नाम की !
क्या होगा..
थोडा मन हल्का होगा
थोडा भारी होगा..
याद आएँगी
कुछ बातें
बरसों पुराने शाम की !
ऐसे में ही, कहीं दूर..
कोई बादल
भिगो जायेगा
तुम्हारे झरोखे के परदे
शायद ...तब कहीं ,
तुम्हे भी बोध होगा
और लिखोगी सच में
एक खत मेरे नाम की !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ',2015
क्यों ना
लिख लूं
और बाँच भी लूं
खुद ही
कुछ चिट्ठियाँ
मेरे - तुम्हारे नाम की !
क्या होगा..
थोडा मन हल्का होगा
थोडा भारी होगा..
याद आएँगी
कुछ बातें
बरसों पुराने शाम की !
ऐसे में ही, कहीं दूर..
कोई बादल
भिगो जायेगा
तुम्हारे झरोखे के परदे
शायद ...तब कहीं ,
तुम्हे भी बोध होगा
और लिखोगी सच में
एक खत मेरे नाम की !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ',2015