तुम
भूल जाना
जान बूझ कर
घर की अलार्म घडी में चाबी भरना
और ..
टांग देना
परदेश से भेजी
मेरी चिट्ठियों का बस्ता
घंटाघर की घडी के
घंटे की चरखी में
मैं भी
कोशिश में हूँ
चुरा लूँगा
सारे घोड़े
सूरज के अस्तबल से
जानती हो..
जगह देख रखी है
झील के करीब
हरसिंगार के बागान के पीछे
बांस के झुरमुट में छिपे
विशाल बरगद की गोद में
तुम तो रहोगी ना..
मेरा साथ देने को
पक्की खबर है..
अरसे बाद
आज से तीसरे दिन
चाँद..गगन से उतरकर
चांदनी से मिलने को ,
घंटों बातें करने को
आने वाला है..
फिर से कहता हूँ
भूलना नहीं
अभी से लगा लो
कैलेंडर में
मेहंदी के सुर्ख निशान.
Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०११
कल्पनाओं का सुंदर उडान......
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
bahut pyari rachana hai...
ReplyDeletekya baat hai bahut sundar aakhiri line to gazab ki hai........mehandi ke surkh nishan.....waah.
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता..
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़ कर..
शुभकामनाये..
As u asked..i take pics from google images..may be that girls pic is from national geographic channel..i'm not sure..i took it from google.
ReplyDeleteregards.
बांस के झुरमुट के पीछे बरगद की गोद में चाँद-चांदनी का मिलन .आह...
ReplyDeleteतुम
ReplyDeleteभूल जाना
जान बूझ कर
घर की अलार्म घडी में चाबी भरना
और ..
टांग देना
परदेश से भेजी
मेरी चिट्ठियों का बस्ता
घंटाघर की घडी के
घंटे की चरखी में
वाह क्या खूब अंदाज़ है
सुंदर रचना !
आभार !!
मेरी नई रचना ( अनमने से ख़याल )
कमाल की कविता है.. इतने अनोखे भाव, एक अरसे बाद देखने को मिले!! साधुवाद!!
ReplyDeleteप्यारे प्यारे भाव
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या।
ReplyDeleteकल 28/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, कौन कब आता है और कब जाता है ...
धन्यवाद!
badhiya khayal...bahut sundar
ReplyDeleteप्यार की पाती ..बहुत सुन्दर
ReplyDeletebahut komal-si kavita
ReplyDeleteबहुत ही मुश्किल होगा किसी प्रेमिका के लिए यह प्रेम-आमंत्रण अस्वीकार करना.
ReplyDeleteसुन्दर..प्रेमपूर्ण रचना..आभार.