१.
हैं कुछ सवाल
मन में,
रहते हैं
उमड़ते – घुमड़ते
कभी – कभी
छलक आते हैं
आंसू बनकर
आँखों के कोरों पर
और कभी
पसीने की बूंदो में
चमक उठते हैं
मेरी पेशानी पर..
२.
क्षितिज पर
जमीन-आसमां
क्यूँ मिलते नहीं हैं ?
क्यूँ सपनों को
बादलों से पंख होते नहीं हैं?
क्यूँ हर नदी
सागर से जाकर मिलती है?
क्यूँ ये जिंदगी
बड़े-बड़ों से भी
अकेले नहीं संभलती है?
क्यूँ जन्म लेता हूँ,
मरता हूँ बार – बार
तुझसे ही बिछुड कर,
तुझसे ही मिलने को ??
Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०१२