प्रियतमा जिंदगी!! , आओ! , फिर से मिलो , जी लें.. कुछ लम्हे , बेतकल्लुफ होकर , कर लें दो-चार बातें , प्यार की - तकरार की , आ जी लूं तुझे , जी भर कर , कब से खड़ा हूँ , राह में.., बांहे फैलाये, और हूँ बेकरार भी , संग तेरे चलने को , कर वादा आज का , आज की शाम का.., कल हम यहाँ हों न हों!
संतोष जी , आम जन के भयावह सत्य को सुन्दर शब्द दिया है आपने . वो गेंहूँ और गुलाब जहन में उभर गया .
ReplyDeleteफिर वही जीवन का संघर्ष..
ReplyDeleteयही सच है......
ReplyDeleteबहुत खूब.......यही सच है |
ReplyDeletesahi kaha hai apne jo log do roti ki jagad me din rat mehnat karate hai wo anna ka sath kaise de payenge...
ReplyDeletesatik rachana...