जुगनू बनकर
तेरे पीछे-पीछे भागूंगा,
मधुर गीत बन
तुम्हारे कानों से,
तुम्हारे दिल की
धडकनों में उतरूंगा
और जब तुम ...
बंद कर लोगी
पलकें अपनी
मेरे सपनों की अनुभूतियों में,
फिर मैं,
अपने मन के कैनवास पर
तेरा अमिट चित्र उतारूंगा
और बस जाऊँगा ,
तुझसे.. तेरे शहर से कहीं दूर
वहीँ बरसों तक
तेरी बाट निहारूंगा
तू सोंच,
मालूम कर मेरा पता ,
परख कर देख
मन की अनुभूतियों को,
“मैं कौन हूँ तेरा ? “
और क्यों ..
इस जहाँ में आया हूँ !!
दिल से दिल की राह होती है...........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावनाएं...
सादर
अनु
मंजिल तक पहुंचूं.. तो राह सही समझूँ..
Deleteधन्यवाद.
bahut badhiyaa
ReplyDeleteThank you for visiting this Blog post.
Deleteबहुत ख़ूबसूरत भावमयी रचना...
ReplyDeleteparichay janane ka satik tarika sarthak pryas.
ReplyDeleteब्लॉग पर आने का शुक्रिया..
Deletevery very nice.
ReplyDeleteअद्भुत सोच... सुन्दर कल्पना...
ReplyDeleteसोंचता हूँ की ख्याल हकीकत का रूप धरे.. आज नहीं तो कल सही.
Deleteशुक्रिया.
अनुभूतियों को कौन हूँ तेरा में ही.. सब कह दिया .
ReplyDeleteप्रयास की सराहना के लिए शुक्रिया ..
Deletebahut hee badhiyaa santosh bhai!
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी : शुक्रिया .
Deletehttp://urvija.parikalpnaa.com/2012/03/blog-post_28.html
ReplyDeleteरश्मि जी : मेरी रचना शामिल कर हौशला बढ़ाने का शुक्रिया.
Deleteप्रेम का प्याला पी के ही इंसान ऐसा होता है ...
ReplyDeleteसुन्दर भावमय कविता ...
धन्यवाद.. आप तो मन में झांकने की क्षमता रखते हैं..
Deleteआभार.