Tuesday, March 27, 2012

मैं कौन हूँ तेरा ..?


जुगनू बनकर
तेरे पीछे-पीछे भागूंगा,
मधुर गीत बन
तुम्हारे कानों से,
तुम्हारे दिल की
धडकनों में उतरूंगा

और जब तुम ...
बंद कर लोगी
पलकें अपनी
मेरे सपनों की अनुभूतियों में,
फिर मैं,
अपने मन के कैनवास पर
तेरा अमिट चित्र उतारूंगा
और बस जाऊँगा ,
तुझसे.. तेरे शहर से कहीं दूर
वहीँ बरसों तक
तेरी बाट निहारूंगा

तू सोंच,
मालूम कर मेरा पता ,
परख कर देख
मन की अनुभूतियों को,
“मैं कौन हूँ तेरा ? “
और क्यों ..
इस जहाँ में आया हूँ !!

Copyright@संतोष कुमार “सिद्धार्थ”, २०१२

18 comments:

  1. दिल से दिल की राह होती है...........
    बहुत सुन्दर भावनाएं...

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
    Replies
    1. मंजिल तक पहुंचूं.. तो राह सही समझूँ..

      धन्यवाद.

      Delete
  2. बहुत ख़ूबसूरत भावमयी रचना...

    ReplyDelete
  3. parichay janane ka satik tarika sarthak pryas.

    ReplyDelete
    Replies
    1. ब्लॉग पर आने का शुक्रिया..

      Delete
  4. अद्भुत सोच... सुन्दर कल्पना...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सोंचता हूँ की ख्याल हकीकत का रूप धरे.. आज नहीं तो कल सही.

      शुक्रिया.

      Delete
  5. अनुभूतियों को कौन हूँ तेरा में ही.. सब कह दिया .

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रयास की सराहना के लिए शुक्रिया ..

      Delete
  6. Replies
    1. सुरेन्द्र जी : शुक्रिया .

      Delete
  7. http://urvija.parikalpnaa.com/2012/03/blog-post_28.html

    ReplyDelete
    Replies
    1. रश्मि जी : मेरी रचना शामिल कर हौशला बढ़ाने का शुक्रिया.

      Delete
  8. प्रेम का प्याला पी के ही इंसान ऐसा होता है ...
    सुन्दर भावमय कविता ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद.. आप तो मन में झांकने की क्षमता रखते हैं..
      आभार.

      Delete

बताएं , कैसा लगा ?? जरुर बांटे कुछ विचार और सुझाव भी ...मेरे अंग्रेजी भाषा ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें, मैंने लिखा है कुछ जिंदगी को बेहतर करने के बारे में --> www.santoshspeaks.blogspot.com .