जब भी मैं
लिखना चाहूँ
कोई नया..प्रेमगीत
पूछता है
हर अगला हरफ
मुझसे बार-बार
तेरी तस्वीर की तरफ
इशारे करके
इसमें तेरा नाम कहाँ है?
इसमें मेरा नाम कहाँ है?
Copyright@संतोष कुमार "सिद्धार्थ", २०११
प्रियतमा जिंदगी!! , आओ! , फिर से मिलो , जी लें.. कुछ लम्हे , बेतकल्लुफ होकर , कर लें दो-चार बातें , प्यार की - तकरार की , आ जी लूं तुझे , जी भर कर , कब से खड़ा हूँ , राह में.., बांहे फैलाये, और हूँ बेकरार भी , संग तेरे चलने को , कर वादा आज का , आज की शाम का.., कल हम यहाँ हों न हों!
बहुत सुंदर कविता......
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteआभार !!
नाम आये न आये... प्रेम है अगर तो बनी रहेगी कविता!
ReplyDeleteशुभकामनाएं!
bahut khoob .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढि़या।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteबहत सुंदर रचना..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया... वाह!
ReplyDeleteसादर.....
waah...bahut khub
ReplyDeleteहर हरफ सच ही तो कहता है . बेहद खुबसूरत ..
ReplyDeleteक्या खूब कही ...बिना महबूबा के नाम के आपने हिम्मत कैसे की प्रेमगीत लिखने की..??
ReplyDeleteसुन्दर नज्म
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeletebahut khub rachana hai...
ReplyDeleteऔर मेरा नाम कहाँ है??
ReplyDeleteसच ! सुन्दर नज्म.