एक तिनका
न जाने क्यूँ
बाकी रह गया
घोंसले में
सजने से
जी रहा है..
आजकल डर–डर के
गिन रहा है
सांसे.. इस चिंता में
हवा उड़ा न ले जाए
पानी बहा न दे
धुप जला न दे
मिट्टी दफ़न न कर दे
उसके अस्तित्व को..
सोंचता रहता है..
अब कैसे निहारेगा ?
नजदीक से
प्यारी चिड़िया को ,
कैसे देखेगा ?
चिड़िया के बच्चों को,
चहकते हुए,
पंख फैलाते हुए,
जीने का अंदाज..
सीखते हुए .
Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०१२