अरी ओ सुनयना ..
जरा करीब तो आओ
बैठो ..पास हमारे
और सुनो..तो
ये बसंती हवा
कहाँ बहती जाए,
क्या कहती जाए
क्यूँ हवा में
खुशबू सी लहराए
क्यूँ भौंरा
फूलों को गुदगुदाए
ये मदमाती साँझ
किसका नाम बुलाए
अब और
कैसे इशारे करूं
तुझे समझाने को,
पास बुलाने को,
जो ना समझ आये
मेरे शब्दों से
चाहो तो ..,
उसे भी सुन लो
लगकर गले मुझसे,
मेरे दिल की धडकनों में..
मेरी मनुहार
ना सही ..
इस ऋतु के जादू का
मान तो रख लो ना..
अरी सुनयना ..सुनो ना !
Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०१२
bahut hi sundar parstuti....sahaj shabdo se chitrit
ReplyDeleteThank you for visiting my blog.
Deleteप्यार की मनुहार..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
धन्यवाद !
DeleteVery nice & beautiful poem...
ReplyDeleteThank you Sandhya ji.
Deleteसुन्दर...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने का धन्यवाद!
Deleteबढिया रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteसुंदर भाव....
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक रचना। धन्यवाद।
ReplyDeleteप्यार की ये मनुहार बहुत सुन्दर है|
ReplyDeleteडॉ॰ मोनिका शर्मा जी, , सदा, Patali-the-Village और इमरान अंसारी जी :
ReplyDeleteआप सबों का बहुत -बहुत धन्यवाद.
बहुत सुन्दर , प्यारी रचना ...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ....हवा सी लहराती हुई सी प्रतीत हुई ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता और भावाभिव्यक्ति. शब्द-शब्द..बसंती..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है........दिल को भाने वाली
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह वाह!
अरी ओ सुनयना ..सुनो ना...:))
ReplyDeletebahut mulayam si kavita
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