Friday, April 20, 2012

जिन्दगी

जिन्दगी..
दो मुहें सांप जैसी
बीता कल खींचे पीछे,
खींचे आगे
आनेवाला कल
रहे पशोपेश में वर्तमान
किसकी सुने,
किधर जाए


जीना तो चाहे  वो
भविष्य की डगर पर
संजोये सपनों को
पर उलझा रहे ,
साफ़ करता रहे
खुशियों पर
पड़ी धूल भूत की ...


संशय में है
आज का लम्हा
आज की खुशी
समय की घडी में
रेत सी फिसल ना जाए.

Copyright@संतोष कुमार "सिद्धार्थ", २०१२ 

15 comments:

  1. जिन्दगी..
    दो मुहें सांप जैसी
    बीता कल खींचे पीछे,
    खींचे आगे
    आनेवाला कल
    रहे पशोपेश में वर्तमान
    किसकी सुने,
    किधर जाए... कितनी सही व्याख्या की है , बहुत बढ़िया .

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  2. Replies
    1. रचना का अवलोकन करने और अवसर देने का शुक्रिया !!

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  3. जीना तो चाहे वो
    भविष्य की डगर पर
    संजोये सपनों को
    पर उलझा रहे ,
    साफ़ करता रहे
    खुशियों पर
    पड़ी धूल भूत की ..

    ....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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    1. ब्लॉग पर आने का शुक्रिया !!

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  4. बहुत सुंदर.............

    आज को कल (आने वाले और बीते दोनों ) की छाया से बचाए रखने में ही जीवन का सुख है....

    सुंदर भाव.

    अनु

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  5. शानदार इसी कशमकश में झूलता इंसान बहुत ही सुन्दर।

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  6. सार्थकता लिए सटीक चित्रण किया है जिन्‍दगी का ...

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  7. संशय में है
    आज का लम्हा
    आज की खुशी
    समय की घडी में
    रेत सी फिसल ना जाए……………चलो लम्हों को खुशियों की चादर मे समेट लें फ़िसलने से पहले

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  8. wah bhai santosh ji bahut hi sundar chitran kiya hai apne ...badhai

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  9. वाह बहुत खूब ...सटीक लेखन

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  10. बीते के पीछे पड़े रहे तो आज सच में फिसल जायगा ...

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  11. जीवन की पशोपेश का सुन्दर चित्रण किया है !!

    शुभकामनायें ,

    अंजलि 'मानसी'

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  12. क्या कहा है.. वाह !

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बताएं , कैसा लगा ?? जरुर बांटे कुछ विचार और सुझाव भी ...मेरे अंग्रेजी भाषा ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें, मैंने लिखा है कुछ जिंदगी को बेहतर करने के बारे में --> www.santoshspeaks.blogspot.com .