जिन्दगी..
दो मुहें सांप जैसी
बीता कल खींचे पीछे,
खींचे आगे
आनेवाला कल
रहे पशोपेश में वर्तमान
किसकी सुने,
किधर जाए
जीना तो चाहे वो
भविष्य की डगर पर
संजोये सपनों को
पर उलझा रहे ,
साफ़ करता रहे
खुशियों पर
पड़ी धूल भूत की ...
संशय में है
आज का लम्हा
आज की खुशी
समय की घडी में
रेत सी फिसल ना जाए.
Copyright@संतोष कुमार "सिद्धार्थ", २०१२
दो मुहें सांप जैसी
बीता कल खींचे पीछे,
खींचे आगे
आनेवाला कल
रहे पशोपेश में वर्तमान
किसकी सुने,
किधर जाए
जीना तो चाहे वो
भविष्य की डगर पर
संजोये सपनों को
पर उलझा रहे ,
साफ़ करता रहे
खुशियों पर
पड़ी धूल भूत की ...
संशय में है
आज का लम्हा
आज की खुशी
समय की घडी में
रेत सी फिसल ना जाए.
Copyright@संतोष कुमार "सिद्धार्थ", २०१२
जिन्दगी..
ReplyDeleteदो मुहें सांप जैसी
बीता कल खींचे पीछे,
खींचे आगे
आनेवाला कल
रहे पशोपेश में वर्तमान
किसकी सुने,
किधर जाए... कितनी सही व्याख्या की है , बहुत बढ़िया .
kripya rasprabha@gmail.com per sampark karen
ReplyDeleteरचना का अवलोकन करने और अवसर देने का शुक्रिया !!
Deleteजीना तो चाहे वो
ReplyDeleteभविष्य की डगर पर
संजोये सपनों को
पर उलझा रहे ,
साफ़ करता रहे
खुशियों पर
पड़ी धूल भूत की ..
....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ब्लॉग पर आने का शुक्रिया !!
Deleteबहुत सुंदर.............
ReplyDeleteआज को कल (आने वाले और बीते दोनों ) की छाया से बचाए रखने में ही जीवन का सुख है....
सुंदर भाव.
अनु
शानदार इसी कशमकश में झूलता इंसान बहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteसार्थकता लिए सटीक चित्रण किया है जिन्दगी का ...
ReplyDeleteसंशय में है
ReplyDeleteआज का लम्हा
आज की खुशी
समय की घडी में
रेत सी फिसल ना जाए……………चलो लम्हों को खुशियों की चादर मे समेट लें फ़िसलने से पहले
bilkul sahi kaha hai aapne
ReplyDeletewah bhai santosh ji bahut hi sundar chitran kiya hai apne ...badhai
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ...सटीक लेखन
ReplyDeleteबीते के पीछे पड़े रहे तो आज सच में फिसल जायगा ...
ReplyDeleteजीवन की पशोपेश का सुन्दर चित्रण किया है !!
ReplyDeleteशुभकामनायें ,
अंजलि 'मानसी'
क्या कहा है.. वाह !
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