हे प्रभु!
तू
गड़ेरिया बनकर
धरती पर आ
ले चल अपने साथ
मैं थक गया...
अपनी करते-करते
आदमी बन,
चल हाँक ले चल
मुझ मेमने को
तू ही जाने
कौन हूँ,
कहाँ से आया हूँ,
और
कहाँ मुझे जाना है ??
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.
तू
गड़ेरिया बनकर
धरती पर आ
ले चल अपने साथ
मैं थक गया...
अपनी करते-करते
आदमी बन,
चल हाँक ले चल
मुझ मेमने को
तू ही जाने
कौन हूँ,
कहाँ से आया हूँ,
और
कहाँ मुझे जाना है ??
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.
very nice words.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.............
ReplyDeleteथक जाना....मगर हारना मत....
कभी - कभी परमात्मा के पास पूरी तरह से समर्पित हो जाना अनुपम सुख की अनुभूति लेकर आता है .. यही व्यक्त करने की कोशिश की है मैंने.
Deleteशुक्रिया !
अनुपम भाव संयोजन ।
ReplyDeleteधन्यवाद !
Deleteहमारी भी यही प्रार्थना है..आमीन...
ReplyDeleteहाँ प्रभु ... कब तक मासूम मेमनों को जंगल में छोड़ेगा तू
ReplyDeleteमुझे भी इंतज़ार है
सब प्रभु की इच्छा ....
ReplyDeletesundar rachna
ReplyDeleteप्रभु के प्रति समर्पण की सच्ची भावना...
ReplyDeleteआभार