१.
रोता है दिल
घर का भी
जब भी लड़े भाई एक-दूसरे से .
२.
फटती है जमीन की छाती भी
सिर्फ सूखा पड़ने से नहीं ,
खेतों के टुकड़े-टुकड़े होने पर भी.
३.
आसमान रोता है
छुपकर अँधेरी सर्द रातों में,
बिखरी हैं ओस की बूंदें गवाही में.
आखिर में प्रस्तुत है .. एक हल्की-फुल्की फुसफुसाती,गुदगुदाती हुई सी क्षणिका ..
सुनो !
धीमे से ,
और जरा प्यार से
अपनी आँखे खोलना...
कल रात से
कैद हूँ
तुम्हारे सपनों में !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.
रोता है दिल
घर का भी
जब भी लड़े भाई एक-दूसरे से .
२.
फटती है जमीन की छाती भी
सिर्फ सूखा पड़ने से नहीं ,
खेतों के टुकड़े-टुकड़े होने पर भी.
३.
आसमान रोता है
छुपकर अँधेरी सर्द रातों में,
बिखरी हैं ओस की बूंदें गवाही में.
आखिर में प्रस्तुत है .. एक हल्की-फुल्की फुसफुसाती,गुदगुदाती हुई सी क्षणिका ..
सुनो !
धीमे से ,
और जरा प्यार से
अपनी आँखे खोलना...
कल रात से
कैद हूँ
तुम्हारे सपनों में !
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.
बहुत बढ़िया क्षणिकाएँ..................
ReplyDeleteसादर.
फटती है जमीन की छाती भी
ReplyDeleteसिर्फ सूखा पड़ने से नहीं ,
खेतों के टुकड़े-टुकड़े होने पर भी....
सच में दर्द की अभिव्यक्ति है इन हाइकू में ... लाजवाब ...
हौसला बढ़ाने का शुक्रिया..
Deleteसचमुच दर्द का प्रतिबिम्ब हैं ये हाइकू, लेकिन क्षणिका भी लाजवाब है...
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी क्षणिकाएं....
ReplyDeletewah, kya baat hai?
ReplyDeletelajabab hai jamin ke ek bar aur fat jane ki dastaan, sachumch bahut achhi hai,
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