Friday, May 4, 2012

दर्द के प्रतिबिम्ब : कुछ हाइकू

१.
रोता है दिल
घर का भी 
जब  भी लड़े भाई एक-दूसरे से .


२.
फटती है जमीन की छाती भी
सिर्फ सूखा पड़ने से नहीं ,
खेतों के टुकड़े-टुकड़े होने पर भी.


३.
आसमान रोता है
छुपकर अँधेरी सर्द रातों में,
बिखरी हैं ओस की बूंदें गवाही में.


आखिर में प्रस्तुत है .. एक हल्की-फुल्की फुसफुसाती,गुदगुदाती हुई सी क्षणिका ..


सुनो !
धीमे से ,
और जरा प्यार से
अपनी आँखे खोलना...
कल रात से
कैद हूँ
तुम्हारे सपनों में !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.

8 comments:

  1. बहुत बढ़िया क्षणिकाएँ..................

    सादर.

    ReplyDelete
  2. फटती है जमीन की छाती भी
    सिर्फ सूखा पड़ने से नहीं ,
    खेतों के टुकड़े-टुकड़े होने पर भी....

    सच में दर्द की अभिव्यक्ति है इन हाइकू में ... लाजवाब ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हौसला बढ़ाने का शुक्रिया..

      Delete
  3. सचमुच दर्द का प्रतिबिम्ब हैं ये हाइकू, लेकिन क्षणिका भी लाजवाब है...

    ReplyDelete
  4. वाह ...बहुत खूब ।

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर भावमयी क्षणिकाएं....

    ReplyDelete
  6. lajabab hai jamin ke ek bar aur fat jane ki dastaan, sachumch bahut achhi hai,

    ReplyDelete

बताएं , कैसा लगा ?? जरुर बांटे कुछ विचार और सुझाव भी ...मेरे अंग्रेजी भाषा ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें, मैंने लिखा है कुछ जिंदगी को बेहतर करने के बारे में --> www.santoshspeaks.blogspot.com .