Wednesday, August 29, 2012

अनंत के प्रतिबिम्ब !

आओ दिखाएँ 
तुम्हे,
तुम्हारी आँखों में
अनंत का एक रूप
बिल्कुल प्रत्यक्ष में
जरा बैठो तो...
मेरे सामने
और झाँको मेरी आँखों में
और गिनो,
अगर गिन सको तो..?
मेरी आँखों में
तुम्हारी आँखों के
कितने प्रतिबिम्ब हैं?
प्रतिबिम्ब और भी गुणित होंगे...
अगर जो ढलके
एक-दो बूँद आँसू
मेरी या तुम्हारी आँखों में !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२ 

Tuesday, August 21, 2012

शब्द

शब्द...मीठे शब्द 
रोज सुलाने को आये
बचपन की रातों में
लोरी बनकर

आते हैं  जब - तब 
सपनों में, बंद आँखों में 
बुदबुदाते होठों पर 
अबूझ कहानिया लेकर

अहले सुबह में
रोज जगाते हैं
अजान बनकर,
ईश -प्रार्थना के स्वरों में  
और करते रहे प्रेरित
सुन्दर विचारों से 
अनवरत..जाने कब से

शब्द ...तीखे -मीठे शब्द,
प्रशंसा बन पीठ ठोकते  शब्द,
सभ्यता की विकास -गाथा  कहते शब्द.

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२ 

Thursday, August 9, 2012

क्षणिकाएँ

१.
सुन री हवा
ठहर जरा
बताती तो जा
मेरे प्रीतम का पता
गर जो तुम्हे
ना हो मालूम
तो अपने साथ लेती जा
मेरा पता !

२.
गगन के तारे
रोज बुलाते हैं
कहते हैं
बाँट लो
मेरी रौशनी,
मेरी ऊष्मा
और जी लो
अमन चैन से,
बस नाम न दो
न बांटो मुझे
ऐसा कहके 
कि ये मेरा है
वो तुम्हारा है !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ'