शब्द...मीठे शब्द
रोज सुलाने को आये
बचपन की रातों में
लोरी बनकर
आते हैं जब - तब
सपनों में, बंद आँखों में
बुदबुदाते होठों पर
अबूझ कहानिया लेकर
अहले सुबह में
रोज जगाते हैं
अजान बनकर,
ईश -प्रार्थना के स्वरों में
और करते रहे प्रेरित
सुन्दर विचारों से
अनवरत..जाने कब से
शब्द ...तीखे -मीठे शब्द,
प्रशंसा बन पीठ ठोकते शब्द,
सभ्यता की विकास -गाथा कहते शब्द.
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
रोज सुलाने को आये
बचपन की रातों में
लोरी बनकर
आते हैं जब - तब
सपनों में, बंद आँखों में
बुदबुदाते होठों पर
अबूझ कहानिया लेकर
अहले सुबह में
रोज जगाते हैं
अजान बनकर,
ईश -प्रार्थना के स्वरों में
और करते रहे प्रेरित
सुन्दर विचारों से
अनवरत..जाने कब से
शब्द ...तीखे -मीठे शब्द,
प्रशंसा बन पीठ ठोकते शब्द,
सभ्यता की विकास -गाथा कहते शब्द.
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
हर शब्द सुन्दर....जुड़ते गए,,,और सृजन हुआ कविता का...
ReplyDeleteबहुत खूब...
अनु
शब्दों की लड़ियाँ कविता बनी..गीत बने ..कथाएं बनीं.
Deleteआभार
अहले सुबह में
ReplyDeleteरोज जगाते हैं
अजान बनकर,
ईश -प्रार्थना के स्वरों में
और करते रहे प्रेरित
सुन्दर विचारों से
अनवरत..जाने कब से
बिल्कुल सच ...
शब्दों का शब्दों से अनूठा है नाता ...
मन इनके अर्थों से हर पल लुभाता ...
शुक्रिया !
Deleteकुछ कहते ..कुछ पूछते, हर भाव बयां करते शब्द.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
संतोष जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'beloved life' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 23 अगस्त को 'शब्द...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद !
Deleteवाह, सुन्दर शब्द संयोजन
ReplyDelete