Monday, September 17, 2012

मैं और तुम

१.
तुम्हे पता है..?
मेरे बारे में
लोग कहते हैं
कि मैं,  मैं नहीं
कोई और होता हूँ
जब भी मैं
लिख रहा होता हूँ...
कोई गीत,
कोई कविता
तुम्हारे बारे में !

२.
मन मेरा
घूम आया
बन बंजारा
सात समुन्दर पार से
पर तुम मुझे
यही मिलीं
मेरे ही शहर में
पड़ोस की छत पर
भींगे -गीले बाल सुखाते हुए
मैं ही भोला था
समझ न सका 
समय पर .. तेरे इशारों को.

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.


10 comments:

  1. वाह...
    बहुत सुन्दर.......
    तुम्हारे बारे में लिखता हूँ तो बदल जाता हूँ....
    क्या बात कही संतोष जी.

    अनु

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  2. Replies
    1. शुक्रिया अनुपमा जी !

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  3. वाह ... बहुत खूब।

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  4. A man leaves his home to find something he needs....
    and returns to home to find it.. [

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    1. Welcome to my blog Mr Rishi!. You have expressed the theme of the poem in just one sentence. Brilliant !.

      Thank you for your visit.

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  5. वाह बहुत खूबसूरत अहसास

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बताएं , कैसा लगा ?? जरुर बांटे कुछ विचार और सुझाव भी ...मेरे अंग्रेजी भाषा ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें, मैंने लिखा है कुछ जिंदगी को बेहतर करने के बारे में --> www.santoshspeaks.blogspot.com .