१.
तुम्हे पता है..?
मेरे बारे में
लोग कहते हैं
कि मैं, मैं नहीं
कोई और होता हूँ
जब भी मैं
लिख रहा होता हूँ...
कोई गीत,
कोई कविता
तुम्हारे बारे में !
२.
मन मेरा
घूम आया
बन बंजारा
सात समुन्दर पार से
पर तुम मुझे
यही मिलीं
मेरे ही शहर में
पड़ोस की छत पर
भींगे -गीले बाल सुखाते हुए
मैं ही भोला था
समझ न सका
समय पर .. तेरे इशारों को.
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.
तुम्हे पता है..?
मेरे बारे में
लोग कहते हैं
कि मैं, मैं नहीं
कोई और होता हूँ
जब भी मैं
लिख रहा होता हूँ...
कोई गीत,
कोई कविता
तुम्हारे बारे में !
२.
मन मेरा
घूम आया
बन बंजारा
सात समुन्दर पार से
पर तुम मुझे
यही मिलीं
मेरे ही शहर में
पड़ोस की छत पर
भींगे -गीले बाल सुखाते हुए
मैं ही भोला था
समझ न सका
समय पर .. तेरे इशारों को.
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.
वाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.......
तुम्हारे बारे में लिखता हूँ तो बदल जाता हूँ....
क्या बात कही संतोष जी.
अनु
धन्यवाद अनु जी!
Deletesundar abhivyakti ...!!
ReplyDeleteशुक्रिया अनुपमा जी !
Deleteवाह ... बहुत खूब।
ReplyDeleteशुक्रिया सदा जी!
DeleteA man leaves his home to find something he needs....
ReplyDeleteand returns to home to find it.. [
Welcome to my blog Mr Rishi!. You have expressed the theme of the poem in just one sentence. Brilliant !.
DeleteThank you for your visit.
वाह बहुत खूबसूरत अहसास
ReplyDeleteशुक्रिया अंजू जी !
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