Tuesday, July 31, 2012

आत्म-निरीक्षण

आज सुबह..
दर्पण के प्रतिबिम्ब ने
मुझसे ये सवाल पूछा
देखा है..
कभी दर्पण में
ध्यान से
अपना चेहरा ?
कितने बदल गए हो...
तुम क्या थे ...
क्या बनना चाहते थे ..
और क्या बन गए हो ?
है ये तुम्हारी अपनी करतूत
या फिर..
ये वक्त , ये जमाना 
दोनों कामयाब रहे
तुम्हारी सूरत..
तुम्हारी सीरत बदलने में ?

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२ 

Friday, July 20, 2012

अधूरे जज्बात : क्षणिकाएं

१.
कहों...
क्या दिखता है?
तुम्हें मेरी आँखों में
इनमें बसें हैं
तुम्हारे सपनों के स्वेटर पहने 
मेरे हजार सपने
जो जी रहें हैं,
पल रहें हैं 
बड़ी  खूबसूरती से,
आत्मविश्वास से 
जीवन की कड़ी सर्दी में .


२.
जी करे
फिर से मैं
बनूँ सांवरा
रहूँ बावरा
और भागता फिरूं 
तुझ राधिका के पीछे
यहाँ - वहाँ
भूलकर मैं 
अपना आज, अपना काल
अपना नाम ..
और अपनी पहचान भी. 

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२

Friday, July 13, 2012

सफल जीवन की डगर

१.
अवसर
खड़ा है
हर चौराहे पर,
मोड पर,
सुनसान रास्तों में भी
साथ हो लेता है
हर एक
साहसी , जोशीले का
जो उस से नजरें मिलाये ,
और सामना करे खतरों का,
नहीं तो
अवसर भी
फिकरे कसता है,
ताने मारता है
गुजर जाए जो सामने से ,
नज़रे झुकाए, नजरें छिपाए.

२.
सभी
बनाने की कोशिश में हैं
सुन्दर से सुन्दर
तस्वीर जिन्दगी की
पर
सबसे खूबसूरत तस्वीर
उसी की रही,
जिसने परवाह ना की
दिन-रात की..
दुपहरी की..
और चलता रहा
अपने पथ पर
आत्मविश्वास को,
लगन को
अपना हमसफ़र बना
बिना थके ...अनवरत.

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्द्धार्थ', 2012

Tuesday, July 3, 2012

तेरी तलाश में...

१.
यूँ तो अक्सर
मेरा नाम सुनकर
तुम्हारा दिल धडकता है
पर क्या
कोई मुल्क है?
कोई जुबान है?
जिसमें होता हो 
तर्जुमाँ मेरे नाम का 
तुम्हारा नाम !


२.
कहते हैं
ढूँढो जो अगर
लगन से,
धीरज से
तो ईश्वर भी मिल जातें है
यही सोंचकर
तुम्हे ढूँढने चला हूँ मैं !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२