आज सुबह..
दर्पण के प्रतिबिम्ब ने
मुझसे ये सवाल पूछा
देखा है..
कभी दर्पण में
ध्यान से
अपना चेहरा ?
कितने बदल गए हो...
तुम क्या थे ...
क्या बनना चाहते थे ..
और क्या बन गए हो ?
है ये तुम्हारी अपनी करतूत
या फिर..
ये वक्त , ये जमाना
दोनों कामयाब रहे
तुम्हारी सूरत..
तुम्हारी सीरत बदलने में ?
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
दर्पण के प्रतिबिम्ब ने
मुझसे ये सवाल पूछा
देखा है..
कभी दर्पण में
ध्यान से
अपना चेहरा ?
कितने बदल गए हो...
तुम क्या थे ...
क्या बनना चाहते थे ..
और क्या बन गए हो ?
है ये तुम्हारी अपनी करतूत
या फिर..
ये वक्त , ये जमाना
दोनों कामयाब रहे
तुम्हारी सूरत..
तुम्हारी सीरत बदलने में ?
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२