आज सुबह..
दर्पण के प्रतिबिम्ब ने
मुझसे ये सवाल पूछा
देखा है..
कभी दर्पण में
ध्यान से
अपना चेहरा ?
कितने बदल गए हो...
तुम क्या थे ...
क्या बनना चाहते थे ..
और क्या बन गए हो ?
है ये तुम्हारी अपनी करतूत
या फिर..
ये वक्त , ये जमाना
दोनों कामयाब रहे
तुम्हारी सूरत..
तुम्हारी सीरत बदलने में ?
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
दर्पण के प्रतिबिम्ब ने
मुझसे ये सवाल पूछा
देखा है..
कभी दर्पण में
ध्यान से
अपना चेहरा ?
कितने बदल गए हो...
तुम क्या थे ...
क्या बनना चाहते थे ..
और क्या बन गए हो ?
है ये तुम्हारी अपनी करतूत
या फिर..
ये वक्त , ये जमाना
दोनों कामयाब रहे
तुम्हारी सूरत..
तुम्हारी सीरत बदलने में ?
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
zamana ! kise karan kahun
ReplyDeleteहम जो भी आज हैं ... उसमें परिवार, संस्कार, जन्म-स्थान/कर्मस्थली , बचपन से विकसित हो रहे विचार, आस पास का समाज , हमारे प्रयास , उपलब्ध अवसर और मिल रहे प्रोत्साहन/तिरस्कार का काफी योगदान होता है. अब यह व्यक्ति विशेष पर है कि वो किससे कितना प्रभावित हो और कैसे परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर ले..
Deleteशुक्रिया !
ये आत्म निरिक्षण झकझोरता है....
ReplyDeleteगहन भाव...
अनु
गहन भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ...
ReplyDeleteगहन भाव और गहन विचार लिए
ReplyDeleteबेहतरीन रचना....
:-)
शुक्रिया !
Deletebeautiful
ReplyDeleteवाह, क्या खूब कहा है.
ReplyDeleteकभी कभी वक्त की ठोकर खाकर चेहरे बदल जाते हैं...न चाहते हुए भी !!
ReplyDeleteशब्दों के अरणय में आपको मेरी कविता अच्छी लगी...उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया !!
ब्लॉग पर आने का शुक्रिया. शब्दों के अरण्य में मौजूद मेरी कविता पर आपके विचार जानना चाहूँगा.
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