Friday, July 20, 2012

अधूरे जज्बात : क्षणिकाएं

१.
कहों...
क्या दिखता है?
तुम्हें मेरी आँखों में
इनमें बसें हैं
तुम्हारे सपनों के स्वेटर पहने 
मेरे हजार सपने
जो जी रहें हैं,
पल रहें हैं 
बड़ी  खूबसूरती से,
आत्मविश्वास से 
जीवन की कड़ी सर्दी में .


२.
जी करे
फिर से मैं
बनूँ सांवरा
रहूँ बावरा
और भागता फिरूं 
तुझ राधिका के पीछे
यहाँ - वहाँ
भूलकर मैं 
अपना आज, अपना काल
अपना नाम ..
और अपनी पहचान भी. 

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं.......
    प्रेम पगी...

    अनु

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  2. भावमय करते शब्‍द ... अनुपम प्रस्‍तुति।

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  3. अधूरे जज्बातोँ को पृर्णता से व्यक्त करती क्षणिकाएँ ....!

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    1. मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया !

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  4. बेहद खुबसूरत क्षणिकाएँ..

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  5. अभिनव व्यंजना लिए बेहतरीन भाव कणिकाएं .बधाई भाई साहब .

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    1. शुक्रिया वीरुभाई !

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  6. बेहतरीन क्षणिकाएँ. सपनों का स्वेटर सर्दी से बचने के उपाय के रूप में बिलकुल नया प्रयोग लगा. बहुत सुंदर.

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  7. प्रेम की खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  8. क्या दिखता है?
    तुम्हें मेरी आँखों में
    इनमें बसें हैं
    तुम्हारे सपनों के स्वेटर पहने
    मेरे हजार सपने... waah

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    1. उत्साह बढ़ाने का शुक्रिया रश्मि जी !

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