१.
कहों...
क्या दिखता है?
तुम्हें मेरी आँखों में
इनमें बसें हैं
तुम्हारे सपनों के स्वेटर पहने
मेरे हजार सपने
जो जी रहें हैं,
पल रहें हैं
बड़ी खूबसूरती से,
आत्मविश्वास से
जीवन की कड़ी सर्दी में .
२.
जी करे
फिर से मैं
बनूँ सांवरा
रहूँ बावरा
और भागता फिरूं
तुझ राधिका के पीछे
यहाँ - वहाँ
भूलकर मैं
अपना आज, अपना काल
अपना नाम ..
और अपनी पहचान भी.
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
कहों...
क्या दिखता है?
तुम्हें मेरी आँखों में
इनमें बसें हैं
तुम्हारे सपनों के स्वेटर पहने
मेरे हजार सपने
जो जी रहें हैं,
पल रहें हैं
बड़ी खूबसूरती से,
आत्मविश्वास से
जीवन की कड़ी सर्दी में .
२.
जी करे
फिर से मैं
बनूँ सांवरा
रहूँ बावरा
और भागता फिरूं
तुझ राधिका के पीछे
यहाँ - वहाँ
भूलकर मैं
अपना आज, अपना काल
अपना नाम ..
और अपनी पहचान भी.
Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं.......
ReplyDeleteप्रेम पगी...
अनु
भावमय करते शब्द ... अनुपम प्रस्तुति।
ReplyDeleteअधूरे जज्बातोँ को पृर्णता से व्यक्त करती क्षणिकाएँ ....!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया !
Deleteबेहद खुबसूरत क्षणिकाएँ..
ReplyDeleteअभिनव व्यंजना लिए बेहतरीन भाव कणिकाएं .बधाई भाई साहब .
ReplyDeleteशुक्रिया वीरुभाई !
Deleteबेहतरीन क्षणिकाएँ. सपनों का स्वेटर सर्दी से बचने के उपाय के रूप में बिलकुल नया प्रयोग लगा. बहुत सुंदर.
ReplyDeleteप्रेम की खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteक्या दिखता है?
ReplyDeleteतुम्हें मेरी आँखों में
इनमें बसें हैं
तुम्हारे सपनों के स्वेटर पहने
मेरे हजार सपने... waah
उत्साह बढ़ाने का शुक्रिया रश्मि जी !
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