Thursday, February 2, 2012

सुनयना ..सुनो ना !


अरी ओ सुनयना ..
जरा करीब तो आओ
बैठो ..पास हमारे
और सुनो..तो
ये बसंती हवा
कहाँ बहती जाए,
क्या कहती जाए
क्यूँ हवा में
खुशबू सी लहराए
क्यूँ भौंरा
फूलों को गुदगुदाए
ये मदमाती साँझ
किसका नाम बुलाए
अब और
कैसे इशारे करूं
तुझे समझाने को,
पास बुलाने को,
जो ना समझ आये
मेरे शब्दों से
चाहो तो ..,
उसे भी सुन लो
लगकर गले मुझसे,
मेरे दिल की धडकनों में..
मेरी मनुहार
ना सही ..
इस ऋतु के जादू का
मान तो रख लो ना..
अरी सुनयना ..सुनो ना !

Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०१२ 

22 comments:

  1. bahut hi sundar parstuti....sahaj shabdo se chitrit

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  2. प्यार की मनुहार..
    बहुत सुन्दर...

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  3. Replies
    1. मेरे ब्लॉग पर आने का धन्यवाद!

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  4. वाह ...बहुत ही बढि़या।

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  5. बहुत सुन्दर सार्थक रचना। धन्यवाद।

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  6. प्यार की ये मनुहार बहुत सुन्दर है|

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  7. डॉ॰ मोनिका शर्मा जी, , सदा, Patali-the-Village और इमरान अंसारी जी :

    आप सबों का बहुत -बहुत धन्यवाद.

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  8. बहुत सुन्दर , प्यारी रचना ...

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  9. वाह बहुत खूब ....हवा सी लहराती हुई सी प्रतीत हुई ...

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  10. बहुत सुंदर कविता और भावाभिव्यक्ति. शब्द-शब्द..बसंती..

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  11. बहुत सुन्दर रचना है........दिल को भाने वाली

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  12. बहुत सुन्दर
    वाह वाह!

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  13. अरी ओ सुनयना ..सुनो ना...:))

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