Sunday, February 26, 2012

तिनके का दर्द


एक तिनका
न जाने क्यूँ
बाकी रह गया
घोंसले में
सजने से

जी रहा है..
आजकल डर–डर के
गिन रहा है
सांसे.. इस चिंता में
हवा उड़ा न ले जाए
पानी बहा न दे
धुप जला न दे
मिट्टी दफ़न न कर दे
उसके अस्तित्व को..

सोंचता रहता है..
अब कैसे निहारेगा ?
नजदीक से
प्यारी चिड़िया को ,
कैसे देखेगा ?
चिड़िया के बच्चों को,
चहकते हुए,
पंख फैलाते हुए,
जीने का अंदाज..
सीखते हुए .

Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०१२ 

17 comments:

  1. Replies
    1. Onkar ji, Thank you valuable comments. Happy Holi!

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  2. बहुत गहन चिंतन...सुंदर अभिव्यक्ति...

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    1. धन्यवाद कैलाश जी.. होली की शुभकामनाएं!.

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  3. बहुत खूब...
    घोसले से अलग क्या अस्तित्व है तिनके का???
    कुछ भी तो नहीं..

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    1. धन्यवाद विद्या जी.. होली की शुभकामनायें.

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  4. बहुत खूब... गहरा चिंतन...

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  5. bahut sundar..kabhi kabhi kuch cheezen dara hi deti hai..chaahe wo kitne kareeb hi kyun na ho..!

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  6. वाह....बहुत खुबसूरत ।

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!!!!!

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  8. तिनके की पीड़ा को बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने ! उत्तम रचना !

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  9. सहज शब्दों में सुन्दर भावाभिव्यक्ति...बधाई...।

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  10. इतने अच्छे-सच्चे विचार.... बधाई इस सृजन के लिए.

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