Tuesday, July 31, 2012

आत्म-निरीक्षण

आज सुबह..
दर्पण के प्रतिबिम्ब ने
मुझसे ये सवाल पूछा
देखा है..
कभी दर्पण में
ध्यान से
अपना चेहरा ?
कितने बदल गए हो...
तुम क्या थे ...
क्या बनना चाहते थे ..
और क्या बन गए हो ?
है ये तुम्हारी अपनी करतूत
या फिर..
ये वक्त , ये जमाना 
दोनों कामयाब रहे
तुम्हारी सूरत..
तुम्हारी सीरत बदलने में ?

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२ 

10 comments:

  1. Replies
    1. हम जो भी आज हैं ... उसमें परिवार, संस्कार, जन्म-स्थान/कर्मस्थली , बचपन से विकसित हो रहे विचार, आस पास का समाज , हमारे प्रयास , उपलब्ध अवसर और मिल रहे प्रोत्साहन/तिरस्कार का काफी योगदान होता है. अब यह व्यक्ति विशेष पर है कि वो किससे कितना प्रभावित हो और कैसे परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर ले..

      शुक्रिया !

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  2. ये आत्म निरिक्षण झकझोरता है....

    गहन भाव...
    अनु

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  3. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट लेखन ...

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  4. गहन भाव और गहन विचार लिए
    बेहतरीन रचना....
    :-)

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  5. वाह, क्या खूब कहा है.

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  6. कभी कभी वक्त की ठोकर खाकर चेहरे बदल जाते हैं...न चाहते हुए भी !!
    शब्दों के अरणय में आपको मेरी कविता अच्छी लगी...उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया !!

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    Replies
    1. ब्लॉग पर आने का शुक्रिया. शब्दों के अरण्य में मौजूद मेरी कविता पर आपके विचार जानना चाहूँगा.

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बताएं , कैसा लगा ?? जरुर बांटे कुछ विचार और सुझाव भी ...मेरे अंग्रेजी भाषा ब्लॉग पर भी एक नज़र डालें, मैंने लिखा है कुछ जिंदगी को बेहतर करने के बारे में --> www.santoshspeaks.blogspot.com .